बचपन की यादें (Childhood Memories in Rajasthan)

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बचपन की यादें (Childhood Memories in Rajasthan)

बचपन की यादें (Childhood Memories in Rajasthan)

बचपन में जब हमको साइकिल सीखनी होती थी तब हम साइकिल तीन चरणों में सीखी थी , 

पहला चरण   -   कैंची 

दूसरा चरण    -   डंडा 

तीसरा चरण   -   गद्दी ...

तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसे में साइकिल गद्दी से चलाना संभव नहीं होता था।

Childhood Memories in Rajasthan
Childhood Memories

#कैंची वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाया करते थे।

और जब हम ऐसे चलाते थे तो अपना #सीना_तान कर टेढ़ा होकर हैंडिल के पीछे से चेहरा बाहर निकाल लेते थे, और क्लींङ क्लींङ करके घंटी इसलिए बजाते थे ताकी लोग बाग़ देख सकें कि छोरा साईकिल चला रहा है।

आज की पीढ़ी इस "#एडवेंचर" से दूर है उन्हे नही पता कि आठ दस साल की उम्र में 24 इंच की साइकिल चलाना "#जहाज" उड़ाने जैसा होता था।

हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तुड़वाए है और गज़ब की बात ये है कि तब #दर्द भी नही होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपना हाफ कच्छा पोंछते हुए।

आजकल डिजिटल तकनीकी ने बहुत तरक्क़ी कर ली है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में।

मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर #संतुलन बनाना जीवन की पहली #सीख होती थी! 

#जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप #अनाज पिसाने लायक हो गये हैं।

इधर से चक्की तक साइकिल ढुगराते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए।

और यकीन मानिए इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी।

और ये भी सच है कि हमारे बाद "कैंची" प्रथा #विलुप्त हो गयी ।

हम लोगों की दुनिया की #आखिरी_ पीढ़ी हैं जिसने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !

पहला चरण कैंची

दूसरा चरण डंडा

तीसरा चरण गद्दी।

● हम वो आखरी पीढ़ी  हैं, जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की #कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, #प्लेट_में_चाय पी है।

● हम वो आखरी लोग हैं, जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, #गिल्ली-डंडा, पकड़म - पकड़ाई, लुका-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं......!!

😊😊

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