पुरानी मिक्सचर मशीन
मंझले चाचाजी आजीविका के लिए चूना बनाकर बेचने का काम करते थे । यह चूना मकान को चुनने, उस पर छत डालने तथा प्लास्तर करने के काम आता था ।
हमारे अंचल में ज़मीन से निकलने वाले सफेद और मुलायम पत्थर (धोळियो भाटो या झाँझड़ो भाटो) और काली चिकनी मिट्टी को लकड़ियों में जला कर पकाया जाता था जिन्हें क्रमशः चूना और खोर कहते थे । इन दोनों खनिजों और पानी को निश्चित अनुपात में मिलाकर पीसा जाता था । इसे पीसने वाले मशीन को 'घरट' कहा जाता था । अब यह काम हमारे अंचल से लगभग पूर्णतः उठ चुका है ।
कुछ दिन पहले कहीं नागौर क्षेत्र में जाना हुआ तो यह सुखद मन्ज़र फिर आंखों के सामने आ गया । लेकिन स्वरूप में एक बड़ा परिवर्तन था । घरट को घुमाने के लिए पहले भैंसे (पाडे), बैल या ऊँट का उपयोग होता था लेकिन आज यह काम ट्रेक्टर कर रहा था । यानी प्रयुक्त बल या शक्ति के साधन का स्वरूप बदल चुका था लेकिन साध्य नहीं ।
उस समय भैंसे या ऊँट के पीछे-पीछे छड़ी लेकर उसे हांकना भी हम बच्चों के लिए एक मनोरंजन का काम होता होता था और हम बड़े चाव से करते थे ।
समय और विचार दोनों परिवर्तनशील ज़रूर हैं किंतु अविनाशी हैं । निर्माण एक विचार है जिसके स्वरूप बदल सकते हैं किंतु मूल विचार नष्ट नहीं हो सकता ।
चूने सेँ चिनाई की गयी सैँकडो वर्ष पुराने महल मालिये हवेलियाँ तथा मकान चूने की गुणवत्ता की पुष्टी करते हेँ ।
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