शीतला सप्तमी का त्यौहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्ठमी तिथि को मनाया जाता है।
होली के एक सप्ताह बाद अष्टमी तिथि को आने वाला शीतला अष्टमी का पर्व राजस्थान में ही नहीं पूरे उतरी भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता की पूजा करने एवं व्रत रखने से चिकन पॉक्स यानी माता, खसरा, फोड़े, नेत्र रोग नहीं होते है। माता इन रोगों से रक्षा करती है। माता शीतला को मां भगवती का ही रूप माना जाता है। अष्टमी के दिन महिलाएं सुबह ठंडे जल से स्नान करके शीतला माता की पूजा करती है और पूर्व रात्रि को बनाया गया बासी भोजन (दही, राबड़ी, चावल, हलवा, पूरी, गुलगुले) का भोग माता के लगाया जाता है। ठंडा भोजन खाने के पीछे भी एक धार्मिक मान्यता भी है कि माता शीतला को शीतल, ठंडा व्यंजन ओर जल पसंद है। इसलिए माता को ठंडा (बासी) व्यंजन का ही भोग लगाया जाता है। परिवार के सभी सदस्य भी ठंडे पानी से स्नान करते है और रात में बनाया हुवा बासी भोजन ही करते हैं। इससे माता शीतला प्रसन्न होती है।
ऋतु परिवर्तन से मानव शरीर में विभिन्न प्रकार के विकार और रोग होने स्वभाविक है। इन विकारों को दूर करने एवं इनसे रक्षा करने के लिए माता शीतला का व्रत और पूजन किया जाता है। माता शीतला इन विकारों से रक्षा करती है। वहीं वैज्ञानिक तथ्य ये भी है कि इस दिन के बाद से सर्दी की विदाई मानी जाती है।
शीतला अष्टमी पूजा का मुहूर्त: 06:20 से 18:32 बजे।
शीतला सप्तमी महत्व
शीतला माता का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं और जो भी व्यक्ति यह व्रत करता है उसके परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के सभी रोगों और ठंड के कारण होने वाले रोग नहीं होते हैं। इस व्रत की खासियत यह है कि इसमें शीतला माता को भोग लगाने वाले सभी पकवान एक दिन पहले ही बना लिए जाते हैं और दूसरे दिन शीतला माता को भोग लगाया जाता है। यही कारण है कि इस व्रत को बासेड़ा भी कहते हैं। मान्यता तो ये भी है कि शीतला सप्तमी के दिन घर में चूल्हा नही जलाया जाता है अर्थात उस दिन घर के सभी सदस्यों को बासी भोजन ही खाना पड़ता है।
शीतला सप्तमी व्रत की विधि शीतला सप्तमी का व्रत करने वाली महिलाओं को इस दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और एकदम भोर में ही स्नानध्यान भी कर लेना चाहिए। स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए फिर पूजा करने की विधि के अनुसार ही शीतला माता की पूजा करनी चाहिए। पूजा करने के पश्चात एक दिन पहले बनाए गए पकवानों को यानि कि बासी खाद्य पदार्थों, मेवा, मिठाई, पुआ, पूरी, दाल-भात आदि का शीतला माता को भोग लगाना चाहिए। उसके बाद शीतला स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इतना ही नही शीतला माता की कथा सुनने के साथ-साथ जगराता भी करना चाहिए। बता दे कि शीतला सप्तमी का व्रत करने वाले व उनके परिवार के किसी भी सदस्य को गर्म भोजन नही करना चाहिए।
वो जब बाल बनाने लगी तो बालों के नीचे छुपी तीसरी आंख देख कर डर कर भागने लगी। तभी माता ने कहा बेटी डरो मत में शीतला माता हूं और मैं धरती पर ये देखने आई थी कि मेरी पूजा कौन करता है। फिर माता असली रूप में आ गई। कुम्हारिन महिला शीतला माता को देख कर भाव विभोर हो गई ।उसने माता से कहा माता मैं तो बहुत गरीब हूं। आपको कहा बैठाऊ। मेरे पास तो आसन भी नहीं है। माता ने मुस्कुराकर कुम्हारिन के गधे पर जाकर बैठ गई। और झाडू से कुम्हारिन के घर से सफाई कर डलिया में डाल कर उसकी गरीबी को बाहर फेंक दिया।माता ने कुम्हारिन की श्रद्धा भाव से खुश हो कर वर मांगने को कहा। कुम्हारिन ने हाथ जोड़कर कहा माता आप वर देना चाहती है तो आप हमारे डुमरी गांव में ही निवास करे और जो भी इंसान आपकी श्रद्धा भाव से सप्तमी और अष्टमी को पूजा करे और व्रत रखे तथा आपको ठंडा व्यंजन का भोग लगाएं उसकी गरीबी भी ऐसे ही दूर करें। पूजा करने वाली महिला को अखंड शौभाग्य का आशीर्वाद दें। माता शीतला ने कहा बेटी ऐसा ही होगा और कहा कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार कुम्हार को ही होगा।तभी से ये परंपरा चल रही है।
डूंगरी गांव का नाम अब शील की डूंगरी नाम से प्रचलित है।जहाँ माता शीतला का भव्य मंदिर बना हुआ है और सप्तमी पर मंदिर पर विशाल मेला लगता है। काफी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन कर मनौती मांगते है, पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाते है।
शवों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गईं। बीच रास्ते वो विश्राम के लिए रूकीं। वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली। दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी। उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं। कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला, आराम मिलते ही दोनों ने उन्हें आशार्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए।
ये बात सुन दोनों बुरी तरह रोने लगीं और उन्होंने महिला को अपने बच्चों के शव दिखाए। ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है। ये बात सुन वो समझ गईं कि शीतला सप्तमी के दिन ताज़ा खाना बनाने की वजह से ऐसा हुआ।
ये सब जान दोनों ने माता शीतला से माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने को कहा। इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया। इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा।
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।
ऊं जय शीतला माता।
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता।
ऋद्धि सिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता।।
ऊं जय शीतला माता।
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता।
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता।।
ऊं जय शीतला माता।
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता।।
ऊं जय शीतला माता।
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता।
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता।।
ऊं जय शीतला माता।
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता।।
ऊं जय शीतला माता।
जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता।
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता।।
ऊं जय शीतला माता।
रोगन से जो पीडित कोई शरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता।।
ऊं जय शीतला माता।
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता।
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता।।
ऊं जय शीतला माता।
शीतल करती जननी तुही है जग त्राता।
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता।।
ऊं जय शीतला माता।
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता ।
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता।।
ऊं जय शीतला माता।
हर साल होली के सातवें दिन शीतला सप्तमी और आठवें दिन शीतला अष्ठमी मनाई जाती है। इस दिन महिलाएं सुबह अंधेरे में रात के बने मीठे चावल, हल्दी, चने की दाल और लोटे में पानी लेकर होलिका दहन वाली जगह पर जाकर पूजा करती हैं। इस पूजा को उत्तरी भारत के कई जगहों पर बासेड़ा या बसोरा (Baseda) भी कहा जाता है।
शीतला माता की पूजा, कथा और आरती |
होली के एक सप्ताह बाद अष्टमी तिथि को आने वाला शीतला अष्टमी का पर्व राजस्थान में ही नहीं पूरे उतरी भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता की पूजा करने एवं व्रत रखने से चिकन पॉक्स यानी माता, खसरा, फोड़े, नेत्र रोग नहीं होते है। माता इन रोगों से रक्षा करती है। माता शीतला को मां भगवती का ही रूप माना जाता है। अष्टमी के दिन महिलाएं सुबह ठंडे जल से स्नान करके शीतला माता की पूजा करती है और पूर्व रात्रि को बनाया गया बासी भोजन (दही, राबड़ी, चावल, हलवा, पूरी, गुलगुले) का भोग माता के लगाया जाता है। ठंडा भोजन खाने के पीछे भी एक धार्मिक मान्यता भी है कि माता शीतला को शीतल, ठंडा व्यंजन ओर जल पसंद है। इसलिए माता को ठंडा (बासी) व्यंजन का ही भोग लगाया जाता है। परिवार के सभी सदस्य भी ठंडे पानी से स्नान करते है और रात में बनाया हुवा बासी भोजन ही करते हैं। इससे माता शीतला प्रसन्न होती है।
ऋतु परिवर्तन से मानव शरीर में विभिन्न प्रकार के विकार और रोग होने स्वभाविक है। इन विकारों को दूर करने एवं इनसे रक्षा करने के लिए माता शीतला का व्रत और पूजन किया जाता है। माता शीतला इन विकारों से रक्षा करती है। वहीं वैज्ञानिक तथ्य ये भी है कि इस दिन के बाद से सर्दी की विदाई मानी जाती है।
शीतला सप्तमी का शुभ मुहूर्त
27 मार्च सुबह 06:28 से 18:37 तक ।शीतला अष्टमी पूजा का मुहूर्त: 06:20 से 18:32 बजे।
शीतला सप्तमी महत्व
इस व्रत को लेकर मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से घर-परिवार में चेचक रोग, दाह, पित्त ज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, आंखों की सभी बीमारियां आदि शीतलाजनित समस्याएं दूर हो जाती हैं।
शीतला माता का व्रत करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं और जो भी व्यक्ति यह व्रत करता है उसके परिवार में दाहज्वर, पीतज्वर, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र के सभी रोगों और ठंड के कारण होने वाले रोग नहीं होते हैं। इस व्रत की खासियत यह है कि इसमें शीतला माता को भोग लगाने वाले सभी पकवान एक दिन पहले ही बना लिए जाते हैं और दूसरे दिन शीतला माता को भोग लगाया जाता है। यही कारण है कि इस व्रत को बासेड़ा भी कहते हैं। मान्यता तो ये भी है कि शीतला सप्तमी के दिन घर में चूल्हा नही जलाया जाता है अर्थात उस दिन घर के सभी सदस्यों को बासी भोजन ही खाना पड़ता है। शीतला सप्तमी व्रत की विधि शीतला सप्तमी का व्रत करने वाली महिलाओं को इस दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और एकदम भोर में ही स्नानध्यान भी कर लेना चाहिए। स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए फिर पूजा करने की विधि के अनुसार ही शीतला माता की पूजा करनी चाहिए। पूजा करने के पश्चात एक दिन पहले बनाए गए पकवानों को यानि कि बासी खाद्य पदार्थों, मेवा, मिठाई, पुआ, पूरी, दाल-भात आदि का शीतला माता को भोग लगाना चाहिए। उसके बाद शीतला स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इतना ही नही शीतला माता की कथा सुनने के साथ-साथ जगराता भी करना चाहिए। बता दे कि शीतला सप्तमी का व्रत करने वाले व उनके परिवार के किसी भी सदस्य को गर्म भोजन नही करना चाहिए।
माता की पौराणिक कथा - 1
शीतला माता के संदर्भ में अनेक कथाएं प्रचलित है एक कथा के अनुसार एक दिन माता ने सोचा कि धरती पर चल कर देखें की उसकी पूजा कौन-कौन करता है । माता एक बुढ़िया का रूप धारण कर राजस्थान के डूंगरी गांव में गई। माता जब गांव में जा रही थी तभी ऊपर से किसी ने चावल का उबला हुआ पानी डाल दिया। माता के पूरे शरीर पर छाले हो गए और पूरे शरीर में जलन होने लगी। माता दर्द में कराहते हुए गांव में सभी से सहायता मांगी। लेकिन किसी ने भी उनकी नहीं सुनी। गांव में कुम्हार परिवार की एक महिला ने जब देखा कि एक बुढ़िया दर्द से कराह रही है तो उसने माता को बुलाकर घर पर बैठाया और बहुत सारा ठंडा जल माता के ऊपर डाला। ठंडे जल से माता को उन छालों की पीड़ा में काफी राहत महसूस हुई। फिर कुम्हारिन महिला ने माता से कहा माता मेरे पास रात के दही और राबड़ी है, आप इनको खाये। रात के रखे दही और ज्वार की राबड़ी खा कर माता को शरीर में काफी ठंडक मिली। कुम्हारिन ने माता को कहा माता आपके बाल बिखरे है इनको गूथ देती हूं।वो जब बाल बनाने लगी तो बालों के नीचे छुपी तीसरी आंख देख कर डर कर भागने लगी। तभी माता ने कहा बेटी डरो मत में शीतला माता हूं और मैं धरती पर ये देखने आई थी कि मेरी पूजा कौन करता है। फिर माता असली रूप में आ गई। कुम्हारिन महिला शीतला माता को देख कर भाव विभोर हो गई ।उसने माता से कहा माता मैं तो बहुत गरीब हूं। आपको कहा बैठाऊ। मेरे पास तो आसन भी नहीं है। माता ने मुस्कुराकर कुम्हारिन के गधे पर जाकर बैठ गई। और झाडू से कुम्हारिन के घर से सफाई कर डलिया में डाल कर उसकी गरीबी को बाहर फेंक दिया।माता ने कुम्हारिन की श्रद्धा भाव से खुश हो कर वर मांगने को कहा। कुम्हारिन ने हाथ जोड़कर कहा माता आप वर देना चाहती है तो आप हमारे डुमरी गांव में ही निवास करे और जो भी इंसान आपकी श्रद्धा भाव से सप्तमी और अष्टमी को पूजा करे और व्रत रखे तथा आपको ठंडा व्यंजन का भोग लगाएं उसकी गरीबी भी ऐसे ही दूर करें। पूजा करने वाली महिला को अखंड शौभाग्य का आशीर्वाद दें। माता शीतला ने कहा बेटी ऐसा ही होगा और कहा कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार कुम्हार को ही होगा।तभी से ये परंपरा चल रही है।
डूंगरी गांव का नाम अब शील की डूंगरी नाम से प्रचलित है।जहाँ माता शीतला का भव्य मंदिर बना हुआ है और सप्तमी पर मंदिर पर विशाल मेला लगता है। काफी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन कर मनौती मांगते है, पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाते है।
माता की पौराणिक कथा - 2
हिंदू धर्म में प्रसिद्ध कथा के अनुसार एक दिन बूढ़ी औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा। मान्यता के मुताबिक इस व्रत में बासी चावल चढ़ाए और खाए जाते हैं। लेकिन दोनों बहुओं ने सुबह ताज़ा खाना बना लिया। क्योंकि हाल ही में दोनों की संताने हुई थीं, इस वजह से दोनों को डर था कि बासी खाना उन्हें नुकसान ना पहुंचाए। सास को ताज़े खाने के बारे में पता चला तो वो बहुत नाराज़ हुई। कुछ क्षण ही गुज़रे थे, कि पता चला कि दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई। इस बात को जान सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया।शवों को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गईं। बीच रास्ते वो विश्राम के लिए रूकीं। वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली। दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी। उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं। कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला, आराम मिलते ही दोनों ने उन्हें आशार्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए।
ये बात सुन दोनों बुरी तरह रोने लगीं और उन्होंने महिला को अपने बच्चों के शव दिखाए। ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है। ये बात सुन वो समझ गईं कि शीतला सप्तमी के दिन ताज़ा खाना बनाने की वजह से ऐसा हुआ।
ये सब जान दोनों ने माता शीतला से माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने को कहा। इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया। इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा।
शीतला सप्तमी की कथा - 3
किसी गांव में एक महिला रहती थी। वह शीतला माता की भक्त थी तथा शीतला माता का व्रत करती थी। उसके गांव में और कोई भी शीतला माता की पूजा नहीं करता था। एक दिन उस गांव में किसी कारण से आग लग गई। उस आग में गांव की सभी झोपडिय़ां जल गई, लेकिन उस औरत की झोपड़ी सही-सलामत रही। सब लोगों ने उससे इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं माता शीतला की पूजा करती हूं। इसलिए मेरा घर आग से सुरक्षित है। यह सुनकर गांव के अन्य लोग भी शीतला माता की पूजा करने लगे।शीतला माता की आरती
जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।
ऊं जय शीतला माता।
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता।
ऋद्धि सिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता।।
ऊं जय शीतला माता।
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता।
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता।।
ऊं जय शीतला माता।
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा।
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता।।
ऊं जय शीतला माता।
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता।
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता।।
ऊं जय शीतला माता।
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता।।
ऊं जय शीतला माता।
जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता।
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता।।
ऊं जय शीतला माता।
रोगन से जो पीडित कोई शरण तेरी आता।
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता।।
ऊं जय शीतला माता।
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता।
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता।।
ऊं जय शीतला माता।
शीतल करती जननी तुही है जग त्राता।
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता।।
ऊं जय शीतला माता।
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता ।
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता।।
ऊं जय शीतला माता।
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