गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का महत्वपूर्ण त्यौहार है। यह त्यौहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है । भारत में गणेश चतुर्थी का त्यौहार बड़े ही हर्ष और प्रेमभाव से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। इस दिन ही भगवान गणेशजी का जन्म हुआ था। श्री गणेश जी महाराज बुद्धि और समृद्धि के देवता हैं। इसी दिन इनकी पूजा की जाती है।
गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेशजी की प्रतिमायें कई जगहों पर स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा की नो दिन तक पूजा की जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुँचते है। नो दिन बाद गाजे बाजे के साथ श्री गणेशजी प्रतिमा को सरोवर, झील, नदी इत्यादि में विसर्जन करते हैं।
शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेशपुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गण + पति = गणपति। संस्कृतकोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकोंके स्वामी।
गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और गणेश चौथ के नाम से भी जाना जाता है।
गणपतिजी की स्थापना और पूजा मुहूर्त
ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश का जन्म मध्याह्न काल के दौरान हुआ था इसीलिए मध्याह्न के समय को गणेश पूजा के लिये महत्वपूर्ण माना जाता है।
समय के आधार पर, सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य के समय को पाँच भागों में बाँटा गया है। इन पाँच भागों को क्रमशः प्रातःकाल, सङ्गव, मध्याह्न, अपराह्न और सायंकाल के नाम से जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, गणेश स्थापना और गणेश पूजा, मध्याह्न के दौरान की जानी चाहिये। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मध्याह्न के समय को गणेश पूजा के लिये सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। मध्याह्न मुहूर्त में, भक्त-लोग पूरे विधि-विधान से गणेश पूजा करते हैं जिसे षोडशोपचार गणपति पूजा के नाम से जाना जाता है।
गणेश चतुर्थी पर निषिद्ध चन्द्र-दर्शन
पौराणिक गाथाओं के अनुसार, भगवान कृष्ण पर स्यमन्तक नाम की कीमती मणि चोरी करने का झूठा आरोप लगा था। झूठे आरोप में लिप्त भगवान कृष्ण की स्थिति देख के, नारद ऋषि ने उन्हें बताया कि भगवान कृष्ण ने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देखा था जिसकी वजह से उन्हें मिथ्या दोष का श्राप लगा है।
नारद ऋषि ने भगवान कृष्ण को आगे बतलाते हुए कहा कि भगवान गणेश ने चन्द्र देव को श्राप दिया था कि जो व्यक्ति भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दौरान चन्द्र के दर्शन करेगा वह मिथ्या दोष से अभिशापित हो जायेगा और समाज में चोरी के झूठे आरोप से कलंकित हो जायेगा। नारद ऋषि के परामर्श पर भगवान कृष्ण ने मिथ्या दोष से मुक्ति के लिये गणेश चतुर्थी के व्रत को किया और मिथ्या दोष से मुक्त हो गये।
अगर गलती से भी गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रमा को देख लिया हो तो इसके बचाव के लिये इस मन्त्र का जाप करना चाहिये -
सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥
गणेश चतुर्थी पूजन विधि-
चतुर्थी तिथि का प्रारंभ
12 सितंबर को 16 बजकर 7 मिनट से प्रारंभ होकर 13 को 14 बज कर 51 मिनट पर समाप्त होगी। 'विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
तथा
'महिमा जासु जान गनराऊ।
प्रथम पूजित नाम प्रभाऊ।।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा –
एक बार महादेव शंकरजी पार्वतीजी के साथ नर्मदा के तट पर गए। वहाँ एक सुंदर स्थान पर पार्वतीजी ने महादेवजी के साथ चौपड़ खेलने की इच्छा व्यक्त की। भगवान शंकर चौपड़ खेलने के लिये तो तैयार हो गये। परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा? पार्वती ने तत्काल वहाँ की घास के तिनके बटोरकर एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा करके उससे कहा- बेटा ! हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिये तुम बताना की हम में से कौन हारा और कौन जीता।चौपड़ का खेल शुरु हो गया। इस खेल को तीन बार खेला गया और संयोग से तीनों बार पार्वतीजी ही जीतीं। जब अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय पूछा गया तो उसने महादेव शंकरजी को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती नाराज़ हो गई। और उन्होंने नाराजगी में आकर बालक को लंगड़ा होने व किचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया।
बालक ने विनम्रतापूर्वक कहा- माता श्री मुझसे अज्ञानवश में ऐसा हो गया है। मैनें किसी द्वेष में ऐसा नहीं किया। मुझे क्षमा करें तथा श्राप से मुक्ति का उपाय बताएँ। तब ममतारूपी माँ को उस पर दया आ गई और वे बोलीं- यहाँ नाग-कन्याएँ गणेश-पूजन करने को आएँगी। उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत की ओर चली गई।
एक वर्ष बाद वहाँ पर श्रावण में नाग-कन्याएँ गणेश पूजन के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत करके उस बालक को भी व्रत की विधि बताई। उसके बाद बालक ने 21 दिन तक श्रीगणेशजी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से खुश होकर गणेश जी प्रसन्न हो गए। और गणेश ने बालक को फल मांगने के लिये कहा। बालक ने कहा कि, हे विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों।
गणेशजी 'तथास्तु' कहकर अंतर्धान हो गए। बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई। उधर उसी दिन से नाराज होकर पार्वती जी शिवजी से भी विमुख हो गई थीं। उसके बाद भगवान शंकर ने भी बालक की तरह 21 दिन तक श्रीगणेश का व्रत किया, जिसके प्रभाव से पार्वती के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।
वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुँची। वहाँ पहुँचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवान ! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूँ। शिवजी ने 'गणेश व्रत' का इतिहास उनको सुना दिया। यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई।
माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दूर्वा, पुष्प तथा लड्डुओं से गणेशजी का पूजन किया। 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं ही पार्वतीजी से आ मिले। कार्तिकेय ने यही व्रत विधि विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर 'ब्रह्म-ऋषि' होने का वर माँगा। गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। इस प्रकार श्री गणेशजी चतुर्थी व्रत को मनोकामना व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को करने से वो सबकी मनोकामना पूरी करते है।
इस तरह पूजन करने से भगवान श्रीगणेश अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं।
हिन्दू सभ्यता में कई देवी देवतायें हैं। भगवान् श्री गणेश उनमें बहुत ही माने जाते हैं। श्री गणेश भगवान् का रूप देखते ही बच्चे खुश हो जाते हैं। उनके मोटे से पेट, हांथो और हाथी वाले मुखड़े को देख कर हर बच्चे को मज़दार लगता है इसीलिए बच्चे श्री गणेश को बहुत प्रेम भी करते हैं।
श्री गणेश , शिव जी और माता पारवती के पहले पुत्र हैं। ये हिन्दू सभ्यता के अनुसार “सबसे प्रथम भगवान” के नाम से पूजे जाते हैं।
गणेश चतुर्थी की कहानी
एक बार की बात है सभी देवता बहुत ही मुश्किल में थे। सभी देव गण शिवजी के शरण में अपनी मुश्किलों के हल के लिए पहुंचे। उस समय भगवान शिवजी के साथ गणेश और कार्तिकेय भी वहीँ बैठे थे।
देवताओं की मुश्किल को देखकर शिवजी नें गणेश और कार्तिकेय से प्रश्न पुछा – तुममें से कौन देवताओं की मुश्किलों को हल करेगा और उनकी मदद करेगा। जब दोनों भाई मदद करने के लिए तैयार हो गए तो शिवजी नें उनके सामने एक प्रतियोगिता रखा। इस प्रतियोगिता के अनुसार दोनों भाइयों में जो भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा वही देवताओं की मुश्किलों में मदद करेगा।
जैसे ही शिवजी नें यह बात कही – कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर बैठ कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए। परन्तु गणेश जी वही अपनी जगह पर खड़े रहे और सोचने लगे की वह मूषक की मदद से पुरे पृथ्वी का चक्कर कैसे लगा सकते हैं? उसी समय उनके मन में एक उपाय आया। वे अपने पिता शिवजी और माता पारवती के पास गए और उनकी सात बार परिक्रमा करके वापस अपनी जगह पर आकर खड़े हो गए।
कुछ समय बाद कार्तिकेय पृथ्वी का पूरा चक्कर लगा कर वापस पहुंचे और स्वयं को विजेता कहने लगे। तभी शिवजी नें गणेश जी की ओर देखा और उनसे प्रश्न किया – क्यों गणेश तुम क्यों पृथ्वी की परिक्रमा करने नहीं गए?
तभी गणेश जी ने उत्तर दिया – “माता पिता में ही तो पूरा संसार बसा है?” चाहे में पृथ्वी की परिक्रमा करूँ या अपने माता पिता की एक ही बात है।
यह सुन कर शिवजी बहुत खुश हुए और उन्होंने गणेश जी को सभी देवताओं के मुश्किलों को दूर करने की आज्ञा दी।
साथ ही शिवजी नें गणेश जी को यह भी आशीर्वाद दिया कि कृष्ण पक्ष के चतुर्थी में जो भी व्यक्ति तुम्हारी पूजा और व्रत करेगा उसके सभी दुःख दूर होंगे और भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी।
कुछ साल बीत गए, शिवजी उसके अपार तप को देखकर प्रभावित हो गए और शिवजी उसके सामने प्रकट हुए। शिवजी नें खुश हो कर उसे दैविक शक्तियाँ प्रदान किया जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। सबसे बड़ी ताकत जो शिवजी नें उसे प्रदान किया वह यह था की उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। असुर गजमुख को अपनी शक्तियों पर गर्व हो गया और वह अपने शक्तियों का दुर्पयोग करने लगा और देवी-देवताओं पर आक्रमण करने लगा।
मात्र शिव, विष्णु, ब्रह्मा और गणेश ही उसके आतंक से बचे हुए थे। गजमुख चाहता था की हर कोई देवता उसकी पूजा करे। सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के शरण में पहुंचे और अपनी जीवन की रक्षा के लिए गुहार करने लगे। यह सब देख कर शिवजी नें गणेश को असुर गजमुख को यह सब करने से रोकने के लिए भेजा।
गणेश जी नें गजमुख के साथ युद्ध किया और असुर गजमुख को बुरी तरह से घायल कर दिया। लेकिन तब भी वह नहीं माना। उस राक्षक नें स्वयं को एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेश जी की और आक्रमण करने के लिए दौड़ा। जैसे ही वह गणेश जी के पास पहुंचा गणेश जी कूद कर उसके ऊपर बैठ गए और गणेश जी ने गजमुख को जीवन भर के मुस में बदल दिया और अपने वाहन के रूप में जीवन भर के लिए रख लिया।
बाद में गजमुख भी अपने इस रूप से खुश हुआ और गणेश जी का प्रिय मित्र भी बन गया।
मध्याह्न गणेश पूजा का समय = 11:03 से 13 :30
अवधि = 2 घण्टे 27 मिनट्स
12th को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय = 13: 07 से 20:33
अवधि = 4 घण्टे 26 मिनट्स
13th को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय = 09:31 से 21: 12
अवधि = 11 घण्टे 40 मिनट्स
देवताओं की मुश्किल को देखकर शिवजी नें गणेश और कार्तिकेय से प्रश्न पुछा – तुममें से कौन देवताओं की मुश्किलों को हल करेगा और उनकी मदद करेगा। जब दोनों भाई मदद करने के लिए तैयार हो गए तो शिवजी नें उनके सामने एक प्रतियोगिता रखा। इस प्रतियोगिता के अनुसार दोनों भाइयों में जो भी सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा वही देवताओं की मुश्किलों में मदद करेगा।
जैसे ही शिवजी नें यह बात कही – कार्तिकेय अपनी सवारी मोर पर बैठ कर पृथ्वी की परिक्रमा करने चले गए। परन्तु गणेश जी वही अपनी जगह पर खड़े रहे और सोचने लगे की वह मूषक की मदद से पुरे पृथ्वी का चक्कर कैसे लगा सकते हैं? उसी समय उनके मन में एक उपाय आया। वे अपने पिता शिवजी और माता पारवती के पास गए और उनकी सात बार परिक्रमा करके वापस अपनी जगह पर आकर खड़े हो गए।
कुछ समय बाद कार्तिकेय पृथ्वी का पूरा चक्कर लगा कर वापस पहुंचे और स्वयं को विजेता कहने लगे। तभी शिवजी नें गणेश जी की ओर देखा और उनसे प्रश्न किया – क्यों गणेश तुम क्यों पृथ्वी की परिक्रमा करने नहीं गए?
तभी गणेश जी ने उत्तर दिया – “माता पिता में ही तो पूरा संसार बसा है?” चाहे में पृथ्वी की परिक्रमा करूँ या अपने माता पिता की एक ही बात है।
यह सुन कर शिवजी बहुत खुश हुए और उन्होंने गणेश जी को सभी देवताओं के मुश्किलों को दूर करने की आज्ञा दी।
साथ ही शिवजी नें गणेश जी को यह भी आशीर्वाद दिया कि कृष्ण पक्ष के चतुर्थी में जो भी व्यक्ति तुम्हारी पूजा और व्रत करेगा उसके सभी दुःख दूर होंगे और भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी।
गणेश और सवारी मूषक की कहानी
बहुत समय की बात है, एक बहुत ही भयंकर असुरों का राजा था – गजमुख। वह बहुत ही शक्तिशाली बनना और धन चाहता था। वह साथ ही सभी देवी-देवताओं को अपने वश में करना चाहता था इसलिए हमेशा भगवान् शिव से वरदान के लिए तपस्या करता था। शिव जी से वरदान पाने के लिए वह अपना राज्य छोड़ कर जंगल में जा कर रहने लगा और शिवजी से वरदान प्राप्त करने के लिए, बिना पानी पिए भोजन खाए रातदिन तपस्या करने लगा।कुछ साल बीत गए, शिवजी उसके अपार तप को देखकर प्रभावित हो गए और शिवजी उसके सामने प्रकट हुए। शिवजी नें खुश हो कर उसे दैविक शक्तियाँ प्रदान किया जिससे वह बहुत शक्तिशाली बन गया। सबसे बड़ी ताकत जो शिवजी नें उसे प्रदान किया वह यह था की उसे किसी भी शस्त्र से नहीं मारा जा सकता। असुर गजमुख को अपनी शक्तियों पर गर्व हो गया और वह अपने शक्तियों का दुर्पयोग करने लगा और देवी-देवताओं पर आक्रमण करने लगा।
मात्र शिव, विष्णु, ब्रह्मा और गणेश ही उसके आतंक से बचे हुए थे। गजमुख चाहता था की हर कोई देवता उसकी पूजा करे। सभी देवता शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी के शरण में पहुंचे और अपनी जीवन की रक्षा के लिए गुहार करने लगे। यह सब देख कर शिवजी नें गणेश को असुर गजमुख को यह सब करने से रोकने के लिए भेजा।
गणेश जी नें गजमुख के साथ युद्ध किया और असुर गजमुख को बुरी तरह से घायल कर दिया। लेकिन तब भी वह नहीं माना। उस राक्षक नें स्वयं को एक मूषक के रूप में बदल लिया और गणेश जी की और आक्रमण करने के लिए दौड़ा। जैसे ही वह गणेश जी के पास पहुंचा गणेश जी कूद कर उसके ऊपर बैठ गए और गणेश जी ने गजमुख को जीवन भर के मुस में बदल दिया और अपने वाहन के रूप में जीवन भर के लिए रख लिया।
बाद में गजमुख भी अपने इस रूप से खुश हुआ और गणेश जी का प्रिय मित्र भी बन गया।
गणेश पूजा का समय
अवधि = 2 घण्टे 27 मिनट्स
12th को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय = 13: 07 से 20:33
अवधि = 4 घण्टे 26 मिनट्स
13th को, चन्द्रमा को नहीं देखने का समय = 09:31 से 21: 12
अवधि = 11 घण्टे 40 मिनट्स
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