Sharadiya Navratra

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Sharadiya Navratra

शारदीय नवरात्रा

नवरात्रा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार पूरे भारत में साल में दो बार मनाया जाता है। इस त्यौहार को अलग अलग जगहों पर अलग अलग तरीकों से मनाया जाता हैं लेकिन ये त्यौहार हर कोई मनाता है। मुख्य तौर पर दो नवरात्र मनाए जाते हैं लेकिन हिंदी पंचांग के अनुसार एक वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं। चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ हिंदू कैलेंडर के अनुसार इन महीनों के शुक्ल पक्ष में आते हैं। हिंदू नववर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के पहले दिन यानि पहले नवरात्रे को मनाया जाता है। आपको बता दें कि आषाढ़ और माघ माह के नवरात्रों को गुप्त नवरात्रे कहा जाता है। चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रे बहुत लोकप्रिय हैं। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आने वाले नवरात्रों को दुर्गा पूजा नाम से और शारदीय नवरात्रों के नाम से भी जाना जाता है। अश्विन माह के नवरात्रों को महानवरात्र माना जाता है ये दशहरे से ठीक पहले होते हैं। दुर्गा मां की अलग-अलग शक्तियों की इन नौ दिन में पूजा की जाती है। हर रूप की अपनी-अपनी विशेषता होती है, इसलिए इन नौ दिनों में मां के हर रूप की पूजा होती है।
शारदीय नवरात्रि शुरू हो रहे हैं और आने वाले नौ दिनों तक मां दुर्गा की 9 शक्ति की पूजा- आराधना की जाएगी।
21 सितंबर से शुरू हो रहे नवरात्रि के इस पर्व का आखिरी उपवास  29 सितंबर को यानी नवमी के दिन होगा। नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा को घटस्थापना करने की परंपरा है। इस बार घटस्थापना और पूजा के लिए दो मुहूर्त है एक सुबह का और दूसरा दोपहर का लेकिन इनमें से अभिजीत मुहूर्त को काफी शुभ माना गया है।
घटस्थापना का शुभ मुहूर्त जिन घरों में नवरात्रि पर घट-स्थापना होती है उनके लिए शुभ मुहूर्त 21 सितंबर को सुबह 06 बजकर 03 मिनट से लेकर 08 बजकर 22 मिनट तक का है। इस दौरान घट स्थापना करना अच्छा होता है।
घट स्थापना के लिए कुछ जरुरी सामान की आवश्यकता पड़ती हैं जैसे कि पाट (जिस पर देवी मां को विराजमान किया जाएगा), जौं, साफ और शुद्ध मिट्टी, कलश, नारियल, आम के पत्ते, लाल कपड़ा या चुनरी, मिठाई, फूल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, लौंग, देसी घी, कलावा, शुद्ध जल से भरा हुआ चांदी, सोने या फिर तांबे का लोटा, चावल, फूलों की माला, सुपारी इत्यादि।
ऐसे करें कलश स्थापना: 
कलश स्थापना के लिए सबसे पहले एक पाटे पर लाल कपड़ा बिछाकर थोड़े से चावल रखें। ये चावल गणेश जी के प्रतीक स्वरूप होते हैं। इसके बाद मिट्टी, तांबा, पीतल, सोना या चांदी जिस का भी संभव हो उसका कलश रखें। उस कलश में मिट्टी भरें और साथ ही उसमें थोड़े से समूचे जौ भी डाल दें। इसके बाद कलश पर रोली से स्वास्तिक बना कर मौली यानी कि रक्षा सूत्र से बांध दें। फिर नारियल व आम के पत्ते रखते हुए कलश के ढक्कन को चावल से भर दें। इसके बाद उस पर फल, मिठाई  पान, सुपारी, पैसे आदि चढ़ाकर दीप जलाएं।
ऐसे करें मां की अराधना:
नौ दिन चलने वाले इन शारदीय नवरात्र में हर दिन विधिवत मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। प्रतिदिन मां का साज श्रृंगार करके उनकी सच्चे मन से अराधना करनी चाहिए। मां की पूजा लाल फूल जरूर शामिल करना चाहिए। इसके अलावा सुबह-शाम आरती करनी चाहिए और मां को भोग लगाए हुए प्रसाद को बांट देना चाहिए। नौ दिनों तक दुर्गा सप्तसती, कुंजिका स्रोत, दुर्गा कवच, अर्गला स्त्रोत, कीलक आदि का पाठ करना चाहिए। माना जाता है कि इनका नियमित पाठ करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं। जीवन में खुशियों का आगमन होता है।


शैलपुत्री

ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं। यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है।
Shailputri
Shailputri Devi

माना जाता है कि प्रतिपदा वाले दिन कलश स्थापना करने के साथ ही नवरात्रि का पर्व शुरू हो जाता है। अधिकतर लोग इस दिन अखंड ज्योति भी जलाते हैं, जो नौ दिन तक लगातार प्रज्जवलित होती है। कुछ लोग माता की चौकी के पास जौ भी बोकर भी मां को बुलाते हैं।
प्रतिपदा वाले दिन यानी 21 सितंबर को सुबह का समय कलश स्थापना के लिए शुभ माना गया है। सुबह 6:12 से 08:09 तक घट की स्थापना की सकती है। घट स्थापना का मुहूर्त कुल 1 घंटे 56 मिनट का रहेगा, लेकिन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अभिजीत मुहूर्त  को सबसे शुभ मुहूर्त माना गया है और इस बार ये मुहूर्त सिर्फ 48 मिनट का ही है। प्रत्येक दिन का 15 में से 8वां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त कहलाता है। प्रतिपदा वाले दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:49 से दोपहर 12: 37 बजे तक  है। माना जाता है कि इस मुहूर्त में पूजन कर देवी से जो कुछ भी मांगो, वो पूरी होती है।
कलश स्थापना के लिए मिट्टी का पात्र, जौ, मिट्टी, जल से भरा हुआ कलश, इलायची, सिंदूर, कपूर, रोली, सिक्के, साबुत चावल, साबुत सुपारी, लौंगए अशोक या आम के पांच पत्ते, मौली नारियल, चुनरी,  फल-फूल, फूलों की माला और  श्रृंगार की चीजे आदि चीजों की जरूरत होती है।
प्रथम माता शैलपुत्री के ऐसे करें व्रत व पूजन विधि दुर्गा-पूजा के पहले दिन मां शैलपुत्री की उपासना का विधान है। नवरात्र का प्रारम्भ प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ होता है। कलश को हिन्दु विधानों में मंगलमूर्ति गणेश का स्वरूप माना जाता है अत: सबसे पहले कलश की स्थापना की जाती है।
कलश स्थापना के लिए भूमि को सिक्त यानी शुद्ध किया जाता है। गोबर और गंगा-जल से भूमि को लिपा जाता है। विधि- विधान के अनुसार इस स्थान पर अक्षत डाले जाते हैं तथा कुमकुम मिलाकर डाला जाता है तत्पश्चात इस पर कलश स्थापित किया जाता है।
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है।
मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं। इनकी पूजन विधि इस प्रकार है-
सबसे पहले चौकी पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्धय, आचमन, Fान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।
ध्यान मंत्र
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृतशेखराम्।
वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्H
अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।
महत्व
हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार का महत्व सर्वप्रथम है। अत: नवरात्रि के पहले दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए। शैलपुत्री का आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है। स्ति्रयों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।

ब्रह्मचारिणी

नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमण्डल रहता है।
Brahmacharini Devi
Brahmacharini Devi

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा
नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का विधान है। देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों को अमोघ फल देने वाला है। देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है, तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है। मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी। यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन हैं। मुख पर कठोर तपस्या के कारण तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम है जो तीनों लोको को उजागर कर रहा है। देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला है और बायें हाथ में कमण्डल होता है। देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं। इस देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा।

पूजा विधि-
देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा का विधान इस प्रकार है, सर्वप्रथम आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमंत्रित किया है उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शर्करा, घृत, व मधु से स्नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें। प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें। कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें। इनकी पूजा के पश्चात माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें। इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें और फिर फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें देवी को लाल फूल काफी पसंद है। घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें।

मंत्र
अंत में क्षमा प्रार्थना करें
आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं, पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्र्वरी।
ब्रह्मचारिणी की ध्यान- वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम् गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम् परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्

मां का मंत्र- 
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुलामा।।

ब्रह्मचारिणी की स्तोत्र पाठ- 
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्

ब्रह्मचारिणी की कवच-
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्र्वरी
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

देवी ब्रह्मचारिणी कथा-
माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं। इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया। जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी। जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है। जो व्यक्ति भक्ति भाव एवं श्रद्धादुर्गा पूजा के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं उन्हें सुख, आरोग्य की प्राप्ति होता है।


चंद्रघंटा

मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा। नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। चंद्रघंटा को शांतिदायक और कल्याणकारी माना जाता है। इनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी लिए इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। माता चंद्रघंटा का शरीर स्वर्ण के समान उज्ज्वल है, इनके दस हाथ हैं। दसों हाथों में खड्ग, बाण आदि शस्त्र सुशोभित रहते हैं। इनका वाहन सिंह है। कहा जाता है कि इनके घंटे की भयानक चडंध्वनि से दानव, अत्याचारी, दैत्य, राक्षस डरते रहते हैं। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक को अलौकिक दर्शन होते हैं, दिव्य सुगन्ध और विविध दिव्य ध्वनियां सुनायी देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।
Maa Chandraghanta
Maa Chandraghanta

मां चन्द्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं खत्म हो जाती हैं। इनकी अराधना फलदायी है। माना जाता है कि मां चंद्रघंटा भक्तों के कष्ट का निवारण शीघ्र कर देती हैं।
मां चंद्रघंटा की आराधना से साधक में वीरता-निर्भरता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होता है। साथ ही स्वर में दिव्य, अलौकिक, माधुर्य का समावेश हो जाता है। मां चन्द्रघंटा के साधक और उपासक जहां भी जाते हैं लोग उन्हें देखकर शान्ति और सुख का अनुभव करते हैं।
मां चंद्रघंटा की अराधना विधि-विधान के अनुसार करने से साधक समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन सकते हैं। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक की समस्त बाधायें हट जाती हैं।

ध्यान
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

स्तोत्र पाठ
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

कवच
रहस्यं श्रुणु वक्ष्यामि शैवेशी कमलानने।
श्री चन्द्रघन्टास्य कवचं सर्वसिध्दिदायकम्॥
बिना न्यासं बिना विनियोगं बिना शापोध्दा बिना होमं।
स्नानं शौचादि नास्ति श्रध्दामात्रेण सिध्दिदाम॥
कुशिष्याम कुटिलाय वंचकाय निन्दकाय च न दातव्यं न दातव्यं न दातव्यं कदाचितम्॥

चंद्रघंटा : मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है।

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