यह कविता हर किसी के लिए है जो राजस्थान से बाहर रह रहे हैं।
पाछा आता क्युँ डर लागे
जद जातां देर करी कोनी
रख परणिजी न हेल्याँ मं
रण रजपूती भी लड़ आई
अब आता क्यूँ न हर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे
जद जातां देर करी कोनी
रख परणिजी न हेल्याँ मं
रण रजपूती भी लड़ आई
अब आता क्यूँ न हर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
पुगण मं जद पोरां घिसगी
परदेश न थारे नेडो़ हो
आवण मं उडन चिड़कली है
बैठ्यां दिखण अब घर लागे
पुगण मं जद पोरां घिसगी
परदेश न थारे नेडो़ हो
आवण मं उडन चिड़कली है
बैठ्यां दिखण अब घर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
कुरजां-सुपनां म रेहती गोरी
जठ बाट जोवंती रातां न
है मोबाईल अब हाथां म
बात्यां र भी पर लागे
जठ बाट जोवंती रातां न
है मोबाईल अब हाथां म
बात्यां र भी पर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
अठ देख्या मोठ फली अर रोटी न
बठ बिकता मुर्गा बकरा री बोटी न
अंडा, मछली स के जी न भरयो
मिठो क्युँ न बाजर लागे
बठ बिकता मुर्गा बकरा री बोटी न
अंडा, मछली स के जी न भरयो
मिठो क्युँ न बाजर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
घर छुट्यो बेस बसन छुट्या
पछ भाषा गयी अर भाव गया
जद भाव गया संसकार गया
Rajasthani People in Field |
अब बेगाना टाबर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
जोड़ तोड़ दड़बा म रेवो
कद बादल तारा थे देख्या
एे ठाडी मोटी बाखल है
अठ अंबर रो छतर लागे
कद बादल तारा थे देख्या
एे ठाडी मोटी बाखल है
अठ अंबर रो छतर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
बठ दो कोड्या रा घर लेतां
पुरखा रां नोरा बेच दिया
लाखां र फ्लेटां पर ईतरावो
करोड़ां री हेली कांकर लागे
पुरखा रां नोरा बेच दिया
लाखां र फ्लेटां पर ईतरावो
करोड़ां री हेली कांकर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
परदुषण रो बठ मरघट है
सांसा पाणी मं मौत बसे
अठ दूध दही री नदियां मं
थाने क्युँ अमृत जहर लागे
सांसा पाणी मं मौत बसे
अठ दूध दही री नदियां मं
थाने क्युँ अमृत जहर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
थे छोड गया सुखा धोरा
ना काम काज कोई धंधों हो
बठ तेल गैस कोयलो निकले
पवन चक्की अर सोलर लागे
ना काम काज कोई धंधों हो
बठ तेल गैस कोयलो निकले
पवन चक्की अर सोलर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
पुण्यु री रातां भी रहती काली
पाणी लोही स्युँ मंहगो हो
अब बिजली कण कण चिमके है
भरया कुआं ताल नहर लागे
पाणी लोही स्युँ मंहगो हो
अब बिजली कण कण चिमके है
भरया कुआं ताल नहर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
जठ खड़क खड़कती तलवारां
बठ आज मशीनां खड़के है
आ भी ज्यावो म्हें कोड करां
चोखो क्युँ न घर लागे
बठ आज मशीनां खड़के है
आ भी ज्यावो म्हें कोड करां
चोखो क्युँ न घर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
टूट्योडां ढ़मढेरां री पीड़ सुणो
आ धरती है अब सोना री
आ ज्यावो पाछा सिसक्याँ लेवे
अलडाता भूँडा पितर लागे
आ धरती है अब सोना री
आ ज्यावो पाछा सिसक्याँ लेवे
अलडाता भूँडा पितर लागे
पाछा आता क्युँ डर लागे ।।
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