हवेली री पीड़ा - कविता (Haveli Ri Pida - Poem)

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हवेली री पीड़ा - कविता (Haveli Ri Pida - Poem)

आँख्या-गीड़, उमड़ती भीड़
सूनी छोड़ग्या बेटी रा बाप !
Haveli in Shekhawati
Haveli in Shekhawati

बुझाग्या चुल्है रो ताप
कुण कमावै, कुण खावै
कुण चिणावै, कुण रेवै !
जंगी ढोलां पर चाल्योड़ी तरेड़
बोदी भींता रा खिंडता लेवड़ा
भुजणता चितराम
चारूंमेर लाग्योड़ी लेदरी
बतावै भूत-भविस वरतमान
री कहाणी ! कीं आणी जाणी !
आदमखोर मिनख
बैंसग्या पड्योड़ा सांसर ज्यूं
भाखर मांय टांडै
जबरी जूण जमारो मांडै !
काकोसा आपरै जींवतै थकां
भींत पर
एक कीड़ी नी चढ़णै देवतां
पण टैम रै आगै कीं रो जोर ?
काकोसा खुद कांच री फ्रेम में
ऊपर टंगग्या
पेट भराई रै जुगाड़ मैं
सगळो कडुमो छोड्यो देस
Haveli in Shekhawati
Haveli in Shekhawati

बसग्या परदेस,
ठांवा रै ताळा, पोळ्यां में बैठग्या
ठाकर रूखाळा।
टूट्योड़ी सी खाट
ठाकरां रा ठाट
बीड्यां रो बंडल, चिलम सिगड़ी
कुणै में उतर्योड़ो घड़ो
गण्डक ससांर घेरणै तांई
एक लाठी
अरड़ावै पांगली पीड़ स्यूं गैली
बापड़ी सूनी हवेली !

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