फिर याद आयी - कविता

gadstp

फिर याद आयी - कविता

Boys in Village
Boys in Village
फिर याद आयी लालटेन, ढिबरी,चिमनी,
माचिस की तीली जल न पायी, बुझ गयी,
वह सीलन भरी कोठरी, बहुत याद आई।
लगातार बिजली की कटोती के  इन
निर्मम दिनों में लालटेन, चिमनी, ढिबरी
व जल न पायी माचिस की तीली बहुत याद आई।

याद आयी संझा बाती, वह रंभाती गाय,
खूंटा तोड़ने को बेताब, बछिया याद आयी
पश्चिम के माथे पर धुल का गुलाल,
बैल गाड़ी की चरर-चूं याद आयी।

अभी तक नही लौटा देखो किधर गया
किता बिगड़ गया छोकरा,
लाठी टेकती जर जर काया,
पुछती फिर रही डगर डगर
गुमशुदा वह आवाज, बहुत याद आयी।

बहुत याद आया कांव कांव करता पीपल
एक बींट की मानो, गिरी अभी अभी सिर पर
बहुत याद आयी, बापू की वह मार
याद आयी वह छड़ी, धमकी, घुड़की
इस कदर आयी हिचकियाँ, लेने लगा रह रह।
Students in School
Students in School

न जाने कहाँ गयी व अठनी चवन्नी
सलाम साहब के घिसे चहरे वाली दुअन्नी,
मोर का पंख इमली का चिंया
खतरनाक नो का पहाड़ा
याद करना भूल जाना
एक स्लेट पानी पोते की डिबिया, बहुत याद आयी।

सचमुच याद आयी, मास्टर जी की कूबडी
हवा में झूलता पाठशाला का वह बोर्ड
टाट पट्टी के टुकड़े के लिए
जीवन मरण का संघर्ष
हाथा  पाई करती नन्ही हथेलियों की
गरमाहट बहुत याद आयी।


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