शेखावाटी की प्राचीन हवेलियों पर कविता
रंग सहेज्यां चटक सोवमां, चित्रां सजी दिवालां।
चित विचलित करती सैनां में, हेल्यां देती झाला।। महल अटारी बड़ा इकदरा, झांकै पुलक झारोखा।
टोडा-टांड़ा रोह्स-मुक्तुम्बा, सबनै लागै चोखा।।
सौ-सौ बरस धूप मेह भीजी, उमर खड़ी रै काटी।
अब परदेसी निजर मिलावै, वाह भाई शेखावाटी।।
गलमुछ्यां को रुतबो न्यारो, ठाकर पोल बिराजै।
फानुस-झाड़गाव-तकिया सज, सीज बैठकां साजै।।
चिलम तमाखू कऊ जागती, गोखां झुकता छाजा।
हाथी होदां सहित समावै, वै हाथी दरवाजा।।
बूंटा-बेल खुद्या सैतीरां, खूट्यां घढ़ी खरादी।
रंग-मांडणा मंड्या बारणां, वाह भाई शेखावाटी।।
अण तोल्यो सिर बोझ, जिरण तन ऊभी घणी उदास।
सुध-बुध खोयां खड़ी, धण्यां सै हेल्यां की अरदास।।
हिमकालो आ पुचकारो तो, उमर घमी बढ़ ज्यावै।
कुल को नाम अमर हो, थानै मान घणो मिल ज्यावै।
मुरतब पड़दादो सा दीन्यो, दादोसा दी ख्याती।
थे पोतां-पड़पोतां फलर्या, वाह भाई शेखावाटी।।
निजर झुकायां डरी डरी, डर घर की बदनामी को।
कर अफसोस निरख सैलानी, बूझै नाम धणी को।।
बिना धमी की सी धण जाणी, उडी उडी सी रंगत।
बेबस अर बदहाल खड़ी, सूनी हेल्यां की पंगत।।
ऊभी करै उजागर थारी, कुल मरयादा थाती।
थे हेल्यां की सुध ल्यो रसिया, वाह भाई शेखावाटी।।
मंदिर महल किला प्राचीरां, कुआ बावड़ी जोह्ड़ा।
हेली चतरी घरमसाल का, कारीगर अब थोड़ा।।
रोह्स दादरा मोख-झरोखा, ढोला लग ऊंचाई।
चेजारा इंजनेर अठे का, चिणदे बिना पढ़ाई।।
सा'पेचां कर कोई घडाई, लादै पाथर पाटी।
मिल खंबा सैतरी लदाई, वाह भाई शेखावाटी।।
फानुस-झाड़गाव-तकिया सज, सीज बैठकां साजै।।
चिलम तमाखू कऊ जागती, गोखां झुकता छाजा।
हाथी होदां सहित समावै, वै हाथी दरवाजा।।
बूंटा-बेल खुद्या सैतीरां, खूट्यां घढ़ी खरादी।
रंग-मांडणा मंड्या बारणां, वाह भाई शेखावाटी।।
अण तोल्यो सिर बोझ, जिरण तन ऊभी घणी उदास।
सुध-बुध खोयां खड़ी, धण्यां सै हेल्यां की अरदास।।
हिमकालो आ पुचकारो तो, उमर घमी बढ़ ज्यावै।
कुल को नाम अमर हो, थानै मान घणो मिल ज्यावै।
मुरतब पड़दादो सा दीन्यो, दादोसा दी ख्याती।
थे पोतां-पड़पोतां फलर्या, वाह भाई शेखावाटी।।
निजर झुकायां डरी डरी, डर घर की बदनामी को।
कर अफसोस निरख सैलानी, बूझै नाम धणी को।।
बिना धमी की सी धण जाणी, उडी उडी सी रंगत।
बेबस अर बदहाल खड़ी, सूनी हेल्यां की पंगत।।
ऊभी करै उजागर थारी, कुल मरयादा थाती।
थे हेल्यां की सुध ल्यो रसिया, वाह भाई शेखावाटी।।
मंदिर महल किला प्राचीरां, कुआ बावड़ी जोह्ड़ा।
हेली चतरी घरमसाल का, कारीगर अब थोड़ा।।
रोह्स दादरा मोख-झरोखा, ढोला लग ऊंचाई।
चेजारा इंजनेर अठे का, चिणदे बिना पढ़ाई।।
सा'पेचां कर कोई घडाई, लादै पाथर पाटी।
मिल खंबा सैतरी लदाई, वाह भाई शेखावाटी।।
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