सियाला में सी पड़ जी ढोला - राजस्थानी कविता

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सियाला में सी पड़ जी ढोला - राजस्थानी कविता

women in mahal
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सियाला में सी पड़ जी ढोला, सूरज निकल्यो बादल म।
पिला पड़ गया खेत भंवरजी, सरसों फूली खेता म॥

डूंगर ऊपर मोर ठिठरग्या, पालो जमाग्यो हांडी म।
छोरा-छोरी सिंया मरग्या, गौरी ठिठर गई सेज्या म।।

अमुवा की डाली पर बैठी, कोयल बोली बागा म।
बेगा आवो बालम म्हारा, गौरी उडीके महला म।।

धोरा ऊपर झुपड़ी, गोरी उडिके बाट!
चांदनी और चकोर को, छुट गयो छ साथ।।

बिलख रही घर री नार, जाव रतन सियालो ।
न चिठ्ठी- न सन्देश मत म्हारो हियो बालो ।।

धन कमाने पिया गए, आया सियालो मास ।
धन को तन नहीँ जाने, मांगे प्रीतम पास ।।
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आंखेँ बरसी प्रीत मेँ, प्रीतम देखूं आह ।
धरती बादल मिल लिये, मेरी उलझी चाह ।।

खत मेँ गत मैँ क्या लिखूं, आओ प्रीतम पास ।
सियालो फीका जा रहा, तुझमेँ अटकी सांस ।।

तुम बिन ये घर घर नहीँ, लगता है बनवास ।
सियालो मेँ जो सग रहो, जीवन बांधूं आस ।।

पापी पेट रै कारन छुट्या घर और बार ।
कद आवोगा थे पिया, बिलख रही घर री नार ।।



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