ऊंट - कविता (Poem on Camel)
वाह भाई शेखावाटी
ऊंट |
ऊबा कान सधी रै गरदन पोतदारड़ो ऊंट।।
दौड़ हवा सै बात करै यो, ऊबो करै उगाली।
मरु-वाहन पर हाल नलागै, दो दो पीठ सवारी।।
मूरी पड़ै नकेलां सटकर, कूंची जावै-पाटी।
म्होर आसण डोर पागड़ा, वाह भाई शेखावाटी।।
दौड़ हवा सै बात करै यो, ऊबो करै उगाली।
मरु-वाहन पर हाल नलागै, दो दो पीठ सवारी।।
मूरी पड़ै नकेलां सटकर, कूंची जावै-पाटी।
म्होर आसण डोर पागड़ा, वाह भाई शेखावाटी।।
चाहे जतरो जोर कराल्यो, ओटा कोनी देवै।
गुड़ फिटकड़ी दियां ऊंट की, दूर हरारत होवै।।
लम्बी नाड़ पैतरा देतो, अयां उड्ठयो जावै।
ओलम्पिक में धावक जइयां, बाजी जीत'र ल्यावै।।
बदल्यां आंख धणी नै दाबै, काम न आवै लाठी।
दूजो ऐब चोर चढ़ बपागै, वाह भाई शेखावाटी।।
गुड़ फिटकड़ी दियां ऊंट की, दूर हरारत होवै।।
लम्बी नाड़ पैतरा देतो, अयां उड्ठयो जावै।
ओलम्पिक में धावक जइयां, बाजी जीत'र ल्यावै।।
बदल्यां आंख धणी नै दाबै, काम न आवै लाठी।
दूजो ऐब चोर चढ़ बपागै, वाह भाई शेखावाटी।।
ऊंट गाड़ी |
लम्बी मजल पार कर लेवै, बिन पाणी की घूंट।
कई दिनां रै ज्याय तिसायो, रेगिस्तानी ऊंट।।
बड़-बड़़ करतो जाय बुहाणै, बैठ्यो करै उगाली।।
जांटी कर खुल्लै चरतै की, करणी पड़ै रुखाली।।
सरपट चालै टीबां ऊपर, होवो कतरी माटी।
मस्ती आयां करै फुरड़क्या, वाह भाई शेखावाटी।।
कई दिनां रै ज्याय तिसायो, रेगिस्तानी ऊंट।।
बड़-बड़़ करतो जाय बुहाणै, बैठ्यो करै उगाली।।
जांटी कर खुल्लै चरतै की, करणी पड़ै रुखाली।।
सरपट चालै टीबां ऊपर, होवो कतरी माटी।
मस्ती आयां करै फुरड़क्या, वाह भाई शेखावाटी।।
आज्कले ब्याह शादी में नाचे यो, रेगिस्तानी ऊंट।।
खेत बाहण के काम आवै, यो रेगिस्तानी ऊंट।।
साज़ सजावट करदो तो यो लगे निराळो
ऊँटनी को दूध करे मरिजा न निरोगो।।
2 टिप्पणियाँ
ऊंट री महिमा निराली
जवाब देंहटाएंबहुत सूणी लिखी सा
बधाई
गणो छोको
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