काल के प्रकार - कविता

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काल के प्रकार - कविता

एक बार स्कूल म छोरे ने गुरूजी सवाल पूछ्यो बोल्यो कि काल कितना प्रकार का होवै हैं छोरो बोल्यो म तो कोनी बेरो गुरूजी, 
जणा गुरूजी बोल्यो - तड़के याद करके आई।
काल के प्रकार
बुद्धि चक्कर खायगी, मिल्यो ना हल तत्काल
छोरो आयो स्कूल स्युं, ले' की एक सवाल
ले' की एक सवाल, जरा पापा बतलाओ
कितना होवे काल, जरा सावळ समझाओ
मैं बोल्यो-बेटा! जीवन में तीन काल है
पति-काल, पत्नी-काल, फ़िर कळह काल।

पति-काल
ब्याह होतां'ई सुण सरु, हो ज्यावै पति-काल
होय पति निज पत्नी री, सेवा स्युं खुशहाल
सेवा स्युं खुसहाल, छींक भी जे आ ज्यावे
एक मिनट में पत्नी ल्या झट चाय पिलावे
क्युं जी तबियत ठीक नहीं तो पांव दबा दयुं
बार बार पूछै माथा पर 'बाम' लगा दयुं ।
पत्नी-काल
एक दो टाबर हो गया, पैदा तो तत्काल
आवै पत्नी काल तद, खत्म होय पति-काल
खत्म होय पति-काल, अगर पति चाय मंगावै
"छोरो रोवै है ठहरो!" पत्नी समझावै
या तो छोरै नै थ्हे थोड़ी देर खिलाल्यो
या खुद जाकी आप किचन में चाय बणाल्यो।
कळह-काल
अर फ़िर कुछ दिन बाद में, पूरो जीवन सेस
कळह-काल में ही कटै, ईं में मीन ना मेख
ईं में मीन ना मेख, कळह रो बजे नंगाड़ो
रोज लड़ाई झगड़ो, घर बण जाए अखाड़ो
कह ताऊ कविराय, कदै भी चैन न पावै
तेल,लूण,लकड़ी रै, चक्कर में फ़ंस ज्यावे।

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