गाँव रा गुवाड़ छुट्या, लारे रह गया खेत ।
धोरां माथली झीणी झीणी, उड़ती बाळू रेत ।।
उड़ती बाळू रेत, नीम री छाया छूटी ,
फोफलिया रो साग , छूटी बाजरी री रोटी ।।
अषाढ़ा रे महीने में जद, खेत बावण जाता ।
हळ चलाता,तेजो गाता, कांदा रोटी खाता ।।
कांदा रोटी खाता, भादवे में काढता 'नीनाण'।
खेत मायला झुपड़ा में, सोता खूंटी ताण ।।
गरज गरज कर मेह बरसतो, खूब नाचता मोर ।
खेजड़ी रा खोखा खाता, बोरटी रा बोर ।।
बोरटी रा बोर, खावंता काकड़िया मतीरा ।
'सिराधां' में जीमता, देसी घी रा सीरा ।।
आसोजां में बाजरी रा, सिट्टा भी पक जाता ।
काती रे महीने में सगळा, मोठ उपाड़न जाता ।।
मोठ उपाड़न जाता, सागे तोड़ता गुवार ।
सर्दी गर्मी सहकर के भी, सुखी हो परिवार ।।
गाँव के हर एक घर में, गाय भैंस रो धीणो ।
घी दूध भी घर का मिलता, वो हो असली जीणो ।।
वो हो असली जीणो, कदे नहीं पड़ता था बीमार ।
गाँव में ही छोड़ आया, ज़िन्दगी रो सार ।।
सियाळे में धूंई तपता, करता खूब हताई ।
आपस में मिलजुल कर रहता, सगळा भाई भाई ।।
कहे कवि गाँव की, आज भी याद सतावे ।
एक बार जो समय बीत ग्यो, अब पाछो नहीं आवे ।।
धोरां माथली झीणी झीणी, उड़ती बाळू रेत ।।
उड़ती बाळू रेत, नीम री छाया छूटी ,
फोफलिया रो साग , छूटी बाजरी री रोटी ।।
अषाढ़ा रे महीने में जद, खेत बावण जाता ।
Camel cart in Village |
कांदा रोटी खाता, भादवे में काढता 'नीनाण'।
खेत मायला झुपड़ा में, सोता खूंटी ताण ।।
गरज गरज कर मेह बरसतो, खूब नाचता मोर ।
खेजड़ी रा खोखा खाता, बोरटी रा बोर ।।
बोरटी रा बोर, खावंता काकड़िया मतीरा ।
'सिराधां' में जीमता, देसी घी रा सीरा ।।
आसोजां में बाजरी रा, सिट्टा भी पक जाता ।
काती रे महीने में सगळा, मोठ उपाड़न जाता ।।
मोठ उपाड़न जाता, सागे तोड़ता गुवार ।
सर्दी गर्मी सहकर के भी, सुखी हो परिवार ।।
गाँव के हर एक घर में, गाय भैंस रो धीणो ।
घी दूध भी घर का मिलता, वो हो असली जीणो ।।
वो हो असली जीणो, कदे नहीं पड़ता था बीमार ।
गाँव में ही छोड़ आया, ज़िन्दगी रो सार ।।
सियाळे में धूंई तपता, करता खूब हताई ।
आपस में मिलजुल कर रहता, सगळा भाई भाई ।।
कहे कवि गाँव की, आज भी याद सतावे ।
एक बार जो समय बीत ग्यो, अब पाछो नहीं आवे ।।
village chapel
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