दादा पोते री बतलावण तू के करसी - कविता

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दादा पोते री बतलावण तू के करसी - कविता

दादों - तू के करसी के नहीं करसी
पोतो - थे के करता के नहीं करता
दादों - गाबाँ में चाय पिया पहली पग धरती तले धरे  
      कोनी
          छापे में मूंड दियो राखे घर को धंधो सलटे  
      कोनी
          आंख्यां पर राखे ढोबसिया मूंडे पर मूंछ क़तर  
      राखी
          बाप जीवता बाळ दिया भदर में के कसर राखी
          तू के करसी के नहीं करसी
पोतो - थे के करता के नहीं करता
          कुर्तो सुथणीयो कडपदार हटड़ी पोथ्याँ सूँ भर राखी
          दिखे ज्यूं सुदो सांसर सो काया  तिरबंकी कर राखी
          बे अंग्रेजां का राज गया बे रीत रिवाज बले कोनी
          तेरो अण जुगतो हुनियारो घर काँ में कठे रले कोनी             
दादों -  तू के करसी के नहीं करसी
पोतो -  थे के करता के नहीं करता
दादों - ताम्बे के मोटे ढीगे ऩे हांडी में ल्हको ल्हको धरता
         गुड की गुडियानी लपसी सूँ म्हे सजन गोंठ सलटा देता
         सिणीया सा बढया झड़ूला पर बरसां सूँ राछ फिरा देता
         पचीस बरस का डांगर ऩे दे चिटकी च्यार भुला देता     
         धोती मण मेल भरी रहती बंड़ी चिटे स्यूं गळ ज्याती
         छाछ मेट  के धोवण स्यूं धोता तो जूवां झड ज्याती
         तू के करसी के नहीं करसी ||