गाँव की लुगायाँ - कविता

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गाँव की लुगायाँ - कविता

गाँव की लुगायाँ

भौरानभोर उठती
पीसणो पीसती
खीचड़ो कूटती
रोट्या पोंवती
गाँव की लुगायाँ।

गाँव की लुगायाँ
Village robes

पूसपालो ल्यावंती
गायाँ ने नीरती
दूध ने दुवती
बिलोवणो करती
गाँव की लुगायाँ।

बुहारी काढ़ती
बरतन मांजती
कपड़ा धोंवती
टाबर बिलमावती
गाँव की लुगायाँ।

खेत जावंती
निनाण करांवती
सीट्या तुड़ावंती
खलो कढावंती
गाँव की लुगायाँ।

पाणी ल्यांवती
गोबर थापती
माथो बांवती
मेहंदी मांडती
गाँव की लुगायाँ।

बरत करती
भजन गांवती
पीपल सींचती
काणी सुनती
गाँव की लुगायाँ।

तातो जिमावती
लुखी सूखी खांवती
सगळौ काम
सळटाया पछै सोंवती
गाँव की लुगाँया।

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