Mhari Sakhi Saheli - Rajasthani poem

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Mhari Sakhi Saheli - Rajasthani poem

Sakhi Saheli
Sakhi Saheli
सुण रै म्हारी सखी सहेली,
किती सुखी है छोटी सी चिड़कली |
जद मन करै रुंख पै आवै,
जद मन करै आकास में फुर सूं उड़ जावै |

सुण रै म्हारी सखी सहेली,
आज्या चालां आपां भी उड़बा बाळपणा मै |


खावां खाटा-मीठा बोरया, अर काचर-मतिरा
आज्या मौज मनावां कांकड़ मै |

आज्या घर बणावां माटी का, गळीयारा में
खेलां चोपड़ - पासा, तिबारा में |

लै खेलां लुख -मिचणी रयुं
तूं लुख्ज्या म्हूँ तनै हैरुं |

किती सुखी है छोटी सी चिड़कली
तो ब्याह की चिंता, ही सासरै आणों-जाणों
अर ही घुंघटो पड़े काढणों |

सुण रै म्हारी सखी सहेली,
चाल बाळपणा नै देवां झालो
आज्या हिंडोळा हिंडा सावण-तिजां मै
अर पूजां ईसर-गौर, गणगौरां मै |

लै आपां गुड्डी बणावां चिरमी-चिप्ल्या की
आज ओळयूं आई पाछी ,पेल्याँ की |


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