इतिहास (History)
'शेखावाटी' राजस्थान का वह क्षेत्र है, जिसको सरदार राव शेखा जी ने बसाया था, जिनके नाम पर ही शेखावाटी प्रसिद्ध हुआ। शेखावाटी आजादी से पहले शेखावत क्षत्रियों का शासन होने के कारण इस क्षेत्र का नाम “शेखावाटी” प्रचलन में आया। इस ऐतिहासिक प्रदेश पर देश की आज़ादी से पूर्व शेखावत क्षत्रियों का शासन काफ़ी समय तक रहा। देशी राज्यों के भारतीय संघ में विलय से पूर्व मनोहरपुर, शाहपुरा, खंडेला, सीकर, खेतड़ी, बिसाऊ, अलसीसर,सुरजगढ़, नवलगढ़, मुकन्दगढ़, लक्ष्मणगढ़, दांता, खाचरियाबास, आदि बड़े-बड़े प्रभावशाली संस्थान शेखा जी के वंशधरों के अधिकार में थे। वर्तमान शेखावाटी पर्यटन और शिक्षा के क्षेत्र में विश्व मानचित्र पर बड़ी तेज़ी से उभरा है। यहाँ पिलानी और लक्ष्मणगढ़ के भारत प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र भी हैं। वही नवलगढ़, फतेहपुर, अलसीसर, मलसीसर, लक्ष्मणगढ, मंडावा आदि जगहों पर बनी प्राचीन बड़ी-बड़ी हवेलियाँ अपनी विशालता और भित्ति चित्रकारी के लिए विश्व प्रसिद्ध है जिन्हें देखने देशी-विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है।
सरदार राव शेखा जी |
'शेखावाटी' राजस्थान वह क्षेत्र है, जो “वीरों की भूमि” कहलाता है। जब भी हिंदुस्तान पर कोई संकट आया शेखावाटी के सपूत उससे मुकाबला करने और वतन को फतह दिलाने के लिए आगे रहे। भारतीय सेना को सबसे ज्यादा सैनिक देने वाला झुंझुनू जिला शेखावाटी का ही भाग है। इस शेखावाटी प्रदेश ने जहाँ देश के लिए अपने प्राणों को बलिदान करने वाले देशप्रेमी दिए वहीँ उद्योगों व व्यापार को बढ़ाने वाले सैंकड़ो उधोगपति व व्यापारी दिए जिन्होंने अपने उधोगों से लाखों लोगों को रोजगार देकर देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दिया। इस क्षेत्र के अपने अमीर सेठों के लिए प्रसिद्ध है। ये सेठ अठारहवीं सदी के शुरुआत से ही यहां से बाहर व्यापार के लिए जाने लगे। इन्होने बम्बई, कलकत्ता, मद्रास जैसे शहरों में व्यापार शुरु किया। वहां से कमाये गये पैसे से इन्होने शेखावाटी में बड़ी बड़ी हवेलिया बनाई। उन दिनों में हवेलियों को खूबसूरत चित्रों से सजाया। अपनी इन्हीं हवेलियों के लिए शेखावाटी का क्षेत्र पूरी दूनिया में जाना जाने लगा है। हालांकि इन हवेलियों के अधिकतर मालिक बाहर ही रहते हैं। जिसके कारण इनकी हालत जर्जर होती जा रही है। पर्यटन को इस तरफ बढा कर इनको खत्म होने से बचाया जा सकता है। शेखावाटी क्षेत्र पर्यटन के लिए सौंदर्य के कई रिसॉर्ट्स प्रदान करता है ।
राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र में शेखावाटी भारत के इतिहास में एक विशेष महत्व है। यहाँ पहाड़ी क्षेत्र (सीकर ज़िले का अधिकतर भाग), मरुस्थलीय भाग (चूरू ज़िला), मैदानी भाग (झुन्झुनु ज़िला) तीनों ही मिल जाते हैं। पहाड़ों में सुरम्य जगहों बने जीण माता मंदिर, शाकम्बरीदेवी का मन्दिर, लोहार्ल्गल के अलावा खाटू में बाबा खाटूश्यामजी का (बर्बरीक) का मन्दिर,सालासर में हनुमान जी का मन्दिर आदि स्थान धार्मिक आस्था के ऐसे केंद्र है जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शनार्थ आते है। रसाले (घुड़सवार सेना) की भर्ती के हेतु शेखावाटी के मुकाबले समस्त भारत में कोई दूसरा क्षेत्र नहीं है। विदेशी सैलानी बड़ी संख्या में यहां घूमने आते है। यहां के मंडावा, फतेहपुर, नवलगढ, महनसर, बिसाऊ जैसे कस्बे हवेलियों के लिए ही जाने जाते हैं। इन कस्बों की पूरी गलियां ही इन हवेलियों से भरी पड़ी हैं। इसके कारण इस क्षेत्र को खुली कला दीर्घी कहा जाने लगा है। महनसर की तो सोने की दुकान देखने विदेशी बहुत आते हैं। इस दुकानें में सोने के इस्तेमाल से पूरी रामायण को दीवारों पर जिवंत लगते चित्रों में उकेरा गया है।
राजस्थान का मरुभूमि वाला पुर्वोतरी एवं पश्चिमोतरी विशाल भूभाग वैदिक सभ्यता के उदय का उषा काल माना जाता है। हजारों वर्ष पूर्व भू-गर्भ में विलुप्त वैदिक नदी सरस्वती यहीं पर प्रवाह मान थी, जिसके तटों पर तपस्यालीन आर्य ऋषियों ने वेदों के सूत्रों की सरंचना की थी। सिन्धुघाटी सभ्यता के अवशेषों एवं विभिन्न संस्कृतियों के परस्पर मिलन, विकास उत्थान और पतन की रोचक एवं गौरव गाथाओं को अपने विशाल आँचल में छिपाए यह मरुभूमि भारतीय इतिहास के गौरवपूर्ण अध्याय की श्र्ष्ठा और द्रष्टा रही है। जनपदीय गणराज्यों की जन्म स्थली और क्रीडा स्थली बने रहने का श्रेय इसी मरुभूमि को रहा है। इस मरुभूमि ने ऐसे विशिष्ठ पुरुषों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने कार्यकलापों से भारतीय इतिहास को प्रभावित किया है।
इसी मरुभूमि का एक भाग प्रमुख भाग शेखावाटी प्रदेश है जो विशालकाय मरुस्थल के पुर्वोतरी अंचल में फैला हुआ है। इसका शेखावाटी नाम विगतकालीन पॉँच शताब्दियों में इस भू-भाग पर शासन करने वाले शेखावत क्षत्रियों के नाम पर प्रसिद्ध हुआ है। उससे से पूर्व अनेक प्रांतीय नामो से इस प्रदेश की प्रसिद्दि रही है। इसी भांति अनेक शासक कुलों ने समय-समय पर यहाँ राज्य किया है।
वीर भूमि शेखावाटी प्रदेश की स्थापना महाराव शेखा जी एवं उनके वंशजों के बल, विक्रम, शोर्य और राज्याधिकार प्राप्त करने की अद्वितीय प्रतिभा का प्रतिफल है। यहाँ के दानी-मानी लक्ष्मी पुत्रों, सरस्वती के अमर साधकों तथा शक्ति के त्यागी-बलिदानी सिंह सपूतों की अनोखी गौरवमयी गाथाओं ने इसकी अलग पहचान बनाई और स्थाई रूप देने में अपनी त्याग व तपस्या की भावना को गतिशील बनाये रखा। यहाँ के प्रबल पराक्रमी, सबल साहसी, आन-बान और मर्यादा के सजग प्रहरी शूरवीरों के रक्त-बीज से शेखावाटी के रूप में यह वट वृक्ष अपनी अनेक शाखाओं प्रशाखाओं में लहराता, झूमता और प्रस्फुटित होता आज भी अपनी अमर गाथाओं को कह रहा है। शेखावाटी नाम लेने मात्र से ही आज भी शोर्य का संचार होता है, दान की दुन्दुभी कानों में गूंजती है और शिक्षा, साहित्य, संस्कृति तथा कला का भाव उर्मियाँ उद्वेलित होने लगती है। यहाँ भित्तिचित्रों ने तो शेखावाटी के नाम को सारे संसार में दूर-दूर तक उजागर किया है। यह धरा धन्य है। ऋषियों की तपोभूमि रही है तो कृषकों की कर्मभूमि। यह धर्मधरा राजस्थान की एक पुण्य स्थली है। ऐतिहासिक द्रष्टि से इसमें झुंझुनू, उदयपुरवाटी, खंडेला, नरहड़, सिंघाना, सीकर, फतेहपुर, आदि कई भाग परिणित होते रहे है। इनका सामूहिक नाम ही शेखावाटी प्रसिद्ध हुआ। जब शेखावाटी का अपना अलग राजनैतिक अस्तित्व था तब उसकी सीमाए इस प्रकार थी - उत्तर पश्चिम में भूतपूर्व बीकानेर राज्य, उत्तरपूर्व में लोहारू और झज्जर, दक्षिण पूर्व में तंवरावाटी और भूतपूर्व जयपुर राज्य तथा दक्षिण पश्चिम में भूतपूर्व जोधपुर राज्य। परन्तु इसकी भौगोलिक सीमाएं सीकर और झुंझुनू दो जिलों तक ही सिमित मानी जाती रही है।
जिस काल का हम वर्णन कर रहे है, शेखावाटी प्रदेश ठिकानों (छोटे उप राज्यों) का एक समूह था, जिसके उत्तर पश्चिम में बीकानेर, उत्तर पूर्व में लोहारू और झज्जर, दक्षिण पूर्व में जयपुर और पाटन तथा दक्षिण पश्चिम में जोधपुर राज्य था। थार्टन के अनुसार शेखावाटी का क्षेत्रफल ३८९० वर्ग मील है जो भारतीय जनगणना रिपोर्ट १९४१ के आंकडों के लगभग बराबर है भारतीय जनगणना रिपोर्ट १९४१ के अनुसार शेखावाटी का क्षेत्रफल ३५८० वर्ग मील है। कर्नल टोड ने शेखावाटी का क्षेत्रफल ५४०० वर्ग मील होने का अनुमान लगाया है जो अतिशयोक्तिपूर्ण एवं अविश्वसनीय है। अपनी अन-उपजाऊ प्राकृतिक स्थिति के कारण शेखावाटी सदैव से योद्धाओं, साहसिकों और दुर्दांत डाकुओं की भूमि रही है। शेखावाटी जयपुर राज्य में सदैव तूफान का केंद्र बनी रही और समय-समय पर जयपुर के आंतरिक शासन में ब्रिटिश हस्तेक्षेप के लिए अवसर जुटाती रही। जयपुर,मारवाड़ और मेवाड़ की भांति शेखावाटी राजनैतिक और भौगोलिक द्रष्टि से एक प्रथक प्रदेश है। शेखावाटी के चीफ लोग जयपुर राज्य की सहायक सैनिक जाति के है और वे नाम मात्र को जयपुर राज्य के अधीन है।
0 टिप्पणियाँ