समय के साथ साथ समाज बदलता है परन्तु जो अपना महत्व बनाए रखता है - वही परंपरा का प्रतीक बन जाता है। ऐसी ही कुछ बातों में से एक है हमारा पंचांग। माना आज सब कुछ बदल गया है फिर भी अपने त्योहारों की तिथि तो अपने पंचांग से ही निर्धारित होती है। भले हम पंचांग की सुध भी ना लें, लेकिन हमारे सारे त्योहारों से लेकर, शादी-ब्याह की तिथियाँ, और शुभ मुहूर्त आदि तो पंचांग से ही निकलता है। भले आज हमें अपनी जन्मतिथि भी याद ना हो और इंग्लिश कलेंडर के अनुसार ही बर्थडे मनाते हो, परन्तु मरने वाले बुजुर्गों के श्राद्ध तो आज भी पंचांग की तिथि के अनुसार ही होते हैं। जिस-प्रकार हजारों वर्षों के इस्लामिक, ब्रिटिश और अब सेकुलर परतंत्रता के बाद भी यज्ञों, मन्त्रों, श्लोकों के माध्यम से पूजा-पाठ और विवाह-आदि रस्मों में ही सही, लेकिन किसी ना किसी रूप में भी हमारी संस्कृत अपना अस्तित्व बचाए हुए है, उसी प्रकार इन त्योहारों ने ही हमारे पंचांग को भी जीवित रखा है। और इसलिए ये भी आवश्यक है की यदि हम अपनी संस्कृति और धरोहर को पुनः संजोना चाहते हैं, तो हम पंचांग को थोडा-बहुत ही सही, लेकिन समझने का प्रयास करें।
हमारे त्यौहार हर साल अपनी दिनांक क्यों बदल लेते हैं? दीवाली कभी अक्टूबर में तो कभी नवम्बर में, कितनी कठिनाई होती है इस कारण। क्रिसमस की तरह 'फिक्स डेट' हो तो कैसा हो? वही हमारे त्योहारों की तिथि हमारे कलेंडर (पंचांग) के अनुसार हमेशा वही रहती है। दीवाली हमेशा कार्तिक की अमावस्या को होगी, तो उसी दिन होगी, और होली फाल्गुन पूर्णिमा को होगी तो तभी होगी।
इसका अर्थ ये कि ११ साल के चक्र के बाद त्यौहार उसी दिन वापस आ जायेंगे जिस दिन ११ साल पहले वो हुए थे। एक उदाहरण से बात स्पष्ट होगी। दीवाली की पिछली ११ वर्षों की दिनांक देखते हैं।
२००१ - १४ नवम्बर (अधिवर्ष)
२००२ - ४ नवम्बर (१० दिन पीछे)
२००३ - २५ अक्टूबर (१० दिन पीछे)
२००४ - १२ नवम्बर (अधिवर्ष, -११ + ३० = १९ दिन आगे)
२००५ - १ नवम्बर (११ दिन पीछे )
२००६ - २१ अक्टूबर (११ दिन पीछे)
२००७ - ९ नवम्बर (अधिवर्ष, पुनः, १९ दिन आगे)
२००८ - २८/२९ अक्टूबर (११ दिन पीछे)
२००९ - १७ अक्टूबर (११ दिन पीछे)
२०१० - ५ नवम्बर (अधिवर्ष, पुनः, १९ दिन आगे)
२०११ - २६ अक्टूबर (१० दिन पीछे)
२०१२ - १३ नवम्बर (अधिवर्ष, १८ दिन आगे)
इस प्रकार ११ वर्षों में घूम कर दीवाली १३ नवम्बर पर आ गयी। यदि २०१२ में २९ फरवरी का अतिरिक्त दिन नहीं होता, तो ये २००१ की १४ नवम्बर की दिनांक से बिलकुल समान हो जाता।
इस प्रकार किसी भी एक वर्ष के किसी एक त्यौहार की दिनांक याद रख कर बिना पंचांग हाथ में लिए भी अपने त्योहारों का सटीक दिनांक निकाला जा सकता है। क्योंकि किन्ही भी दो त्योहारों के बीच में अवधि निश्चित होती है - होली दीवाली के ४.५ चन्द्र माह बाद ही आएगी और दीवाली होली के ७.५ चन्द्र माह बाद (यदि अधिमास है तो ८.५ चन्द्र माह बाद)।
हिन्दू पंचांग हिन्दू समाज द्वारा माने जाने वाला कैलेंडर है। इसके भिन्न-भिन्न रूप मे यह लगभग पूरे नेपाल और भारत मे माना जाता है। पंचांग (पंच + अंग = पांच अंग) हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित पारम्परिक कैलेण्डर या कालदर्शक को कहते हैं। पंचांग नाम पाँच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है।
एक साल में १२ महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में १५ दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में २७ नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं। १२ मास का एक वर्ष और ७ दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पैर रखा जाता है। यह १२ राशियाँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि मे प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र मे होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से ११ दिन ३ घड़ी ४८ पल छोटा है। इसीलिए हर ३ वर्ष मे इसमे एक महीना जोड़ दिया जाता है जिसे अधिक मास कहते हैं।
तिथि
एक दिन को तिथि कहा गया है जो पंचांग के आधार पर उन्नीस घंटे से लेकर चौबीस घंटे तक की होती है। चंद्र मास में ३० तिथियाँ होती हैं, जो दो पक्षों में बँटी हैं। शुक्ल पक्ष में एक से चौदह और फिर पूर्णिमा आती है। पूर्णिमा सहित कुल मिलाकर पंद्रह तिथि। कृष्ण पक्ष में एक से चौदह और फिर अमावस्या आती है। अमावस्या सहित पंद्रह तिथि।
तिथियों के नाम निम्न हैं- पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (एक), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस), त्रयोदशी (तेरस), चतुर्दशी (चौदस) और अमावस्या (अमावस) ।
वार
एक सप्ताह में सात दिन होते हैं:-सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार और रविवार ।
नक्षत्र
आकाश में तारामंडल के विभिन्न रूपों में दिखाई देने वाले आकार को नक्षत्र कहते हैं। मूलत: नक्षत्र 27 माने गए हैं। ज्योतिषियों द्वारा एक अन्य अभिजित नक्षत्र भी माना जाता है। चंद्रमा उक्त सत्ताईस नक्षत्रों में भ्रमण करता है। नक्षत्रों के नाम नीचे चंद्रमास में दिए गए हैं-
योग
योग 27 प्रकार के होते हैं। सूर्य-चंद्र की विशेष दूरियों की स्थितियों को योग कहते हैं। दूरियों के आधार पर बनने वाले 27 योगों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं:- विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यातीपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इन्द्र और वैधृति।
27 योगों में से कुल 9 योगों को अशुभ माना जाता है तथा सभी प्रकार के शुभ कामों में इनसे बचने की सलाह दी गई है। ये अशुभ योग हैं: विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतीपात, परिघ और वैधृति।
करण
एक तिथि में दो करण होते हैं- एक पूर्वार्ध में तथा एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (14) के उत्तरार्ध में शकुनि, अमावस्या के पूर्वार्ध में चतुष्पाद, अमावस्या के उत्तरार्ध में नाग और शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पूर्वार्ध में किस्तुघ्न करण होता है। विष्टि करण को भद्रा कहते हैं। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं।
पक्ष
प्रत्येक महीने में तीस दिन होते हैं। तीस दिनों को चंद्रमा की कलाओं के घटने और बढ़ने के आधार पर दो पक्षों यानी शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में विभाजित किया गया है। एक पक्ष में लगभग पंद्रह दिन या दो सप्ताह होते हैं। एक सप्ताह में सात दिन होते हैं। शुक्ल पक्ष में चंद्र की कलाएँ बढ़ती हैं और कृष्ण पक्ष में घटती हैं।
महीनों के नाम
इन बारह मासों के नाम आकाशमण्डल के नक्षत्रों में से १२ नक्षत्रों के नामों पर रखे गये हैं। जिस मास जो नक्षत्र आकाश में प्राय: रात्रि के आरम्भ से अन्त तक दिखाई देता है या कह सकते हैं कि जिस मास की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी के नाम पर उस मास का नाम रखा गया है। चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास (मार्च-अप्रैल), विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख मास (अप्रैल-मई), ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर ज्येष्ठ मास (मई-जून), आषाढ़ा नक्षत्र के नाम पर आषाढ़ मास (जून-जुलाई), श्रवण नक्षत्र के नाम पर श्रावण मास (जुलाई-अगस्त), भाद्रपद (भाद्रा) नक्षत्र के नाम पर भाद्रपद (भादवो) मास (अगस्त-सितम्बर), अश्विनी के नाम पर आश्विन मास (सितम्बर-अक्टूबर), कृत्तिका के नाम पर कार्तिक मास (अक्टूबर-नवम्बर), मृगशीर्ष के नाम पर मार्गशीर्ष (नवम्बर-दिसम्बर), पुष्य के नाम पर पौष (दिसम्बर-जनवरी), मघा के नाम पर माघ (जनवरी-फरवरी) तथा फाल्गुनी नक्षत्र के नाम पर फाल्गुन (फागण) मास (फरवरी-मार्च) का नामकरण हुआ है।
महीनों के नाम | पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा इस नक्षत्र होता है |
चैत्र | चित्रा, स्वाति |
वैशाख | विशाखा, अनुराधा |
ज्येष्ठ | ज्येष्ठा, मूल |
आषाढ़ | पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़ |
श्रावण | श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा |
भाद्रपद | पूर्वभाद्र, उत्तरभाद्र |
आश्विन | रेवती, अश्विन, भरणी |
कार्तिक | कृतिका, रोहणी |
मार्गशीर्ष | मृगशिरा, आर्द्रा |
पौष | पुनवर्सु, पुष्य |
माघ | अश्लेशा, मघा |
फाल्गुन | पूर्व फाल्गुन, उत्तर फाल्गुन, हस्त |
सौरमास
सौरमास का आरम्भ सूर्य की संक्रांति से होता है। सूर्य की एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति का समय सौरमास कहलाता है। यह मास प्राय: तीस, इकतीस दिन का होता है। कभी-कभी अट्ठाईस और उन्तीस दिन का भी होता है। मूलत: सौरमास (सौर-वर्ष) 365 दिन का होता है।
12 राशियों को बारह सौरमास माना जाता है। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। इस राशि प्रवेश से ही सौरमास का नया महीना शुरू माना गया है। सौर-वर्ष के दो भाग हैं- उत्तरायण छह माह का और दक्षिणायन भी छह मास का। जब सूर्य उत्तरायण होता है तब हिंदू धर्म अनुसार यह तीर्थ यात्रा व उत्सवों का समय होता है। पुराणों अनुसार अश्विन, कार्तिक मास में तीर्थ का महत्व बताया गया है। उत्तरायण के समय पौष-माघ मास चल रहा होता है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण होता है जबकि सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करता है। सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है तब सूर्य दक्षिणायन होता है। दक्षिणायन व्रतों का और उपवास का समय होता है जबकि चंद्रमास अनुसार अषाढ़ या श्रावण मास चल रहा होता है। व्रत से रोग और शोक मिटते हैं। दक्षिणायन में विवाह और उपनयन आदि संस्कार वर्जित है, जब कि अग्रहायण मास में ये सब किया जा सकता है अगर सूर्य वृश्चिक राशि में हो। और उत्तरायण सौर मासों में मीन मास मै विवाह वर्जित है।
सौरमास के नाम: मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ, मीन।
सूर्य के धनुसंक्रमण से मकरसंक्रमण तक मकर राशी में रहता हे। इसे धनुर्मास कहते है। इस माह का धार्मिक जगत में विशेष महत्व है।
चंद्रमास
चंद्रमा की कला की घट-बढ़ वाले दो पक्षों (कृष्ण और शुक्ल) का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है। यह दो प्रकार का शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होकर अमावस्या को पूर्ण होने वाला 'अमांत' मास मुख्य चंद्रमास है। कृष्ण प्रतिपदा से 'पूर्णिमात' पूरा होने वाला गौण चंद्रमास है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है।
पूर्णिमा के दिन, चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। सौर-वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है चंद्र-वर्ष इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है।
सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बड़े हुए दिनों को 'मलमास' या 'अधिमास' कहते हैं।
चंद्रमास के नाम: चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ तथा फाल्गुन।
नक्षत्रमास
आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चंद्रमा के पथ से जुडे हैं। ऋग्वेद में एक स्थान पर सूर्य को भी नक्षत्र कहा गया है। अन्य नक्षत्रों में सप्तर्षि और अगस्त्य हैं। नक्षत्र से ज्योतिषीय गणना करना वेदांग ज्योतिष का अंग है। नक्षत्र हमारे आकाश मंडल के मील के पत्थरों की तरह हैं जिससे आकाश की व्यापकता का पता चलता है। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चंद्र पथ पर 27 ही माने गए हैं।
चंद्रमा अश्विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है वह काल नक्षत्रमास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्रमास कहलाता है।
नक्षत्रों के गृह स्वामी
1. केतु : अश्विन, मघा, मूल।
2. शुक्र : भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़।
3. रवि : कार्तिक, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़।
4. चंद्र : रोहिणी, हस्त, श्रवण।
5. मंगल : मॄगशिरा, चित्रा, श्रविष्ठा।
6. राहु : आद्रा, स्वाति, शतभिषा।
7. बृहस्पति : पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वभाद्रपदा।
8. शनि. पुष्य, अनुराधा, उत्तरभाद्रपदा।
9. बुध : अश्लेशा, ज्येष्ठा, रेवती।
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