आजकल तो घर घर में या फैल रही बीमारी ।
परणीज के आता ही बहू, होवण लागी न्यारी ।।
होवण लागी न्यारी, सासु सागे पटे कोनी ।
साल दो साल भी, सासरे में खटे कोनी ।।
नई पीढ़ी री बहूआ है, बे तो हर आजादी चावे ।
सास ससुर की टोका टाकी, बिलकुल नही सुहावे ।।
बिलकुल नही सुहावे, सुबह उठे है मोड़ी ।
लाज शरम री मर्यादा तो, कद की छोड़ी ।।
साड़ी को पहनाओ छोड्यो, सूट चोखा लागे ।
जींस टॉप पहन कर घुमण, जावे मिनख रे सागे ।।
जावे मिनख रे सागे, सर ढ़कणो छूट गयो है ।
'संस्कारा' सूं अब तो, रिस्तो टूट गयो है ।।
बहूआ की गलती कोनी, बेचारी वे तो है निर्दोष ।
बेटियां के उण माईता को, यो है सगलो दोष।।
यो है सगलो दोष, जका बेटियां ने सिर्फ पढ़ावे।
घर गृहस्ती री बात्या बाने, बिलकुल नही सिखावे।।
पढ़ाई के साथ साथ, "संस्कार"भी है जरुरी ।
"संस्कारा"के बिना तो, हर शिक्षा है अधूरी ।।
हर शिक्षा है अधूरी, डिग्रीयां कोई काम नही आवे ।
बस्यो बसायो घर देखो, मीनटा में टूट जावे ।।
बेटी की तो हर आदत, माँ बाप ने लागे प्यारी ।
वे ही आदता बहू में होवे, जद लागण लागे खारी ।।
लागण लागे खारी, सासु भी ताना मारे ।
कहिं नहीं सिखायो, माईत पीहर में थारे ।।
बेटी ही तो इक दिन, कोई की बहू बण कर जावेली ।
मिलजुल कर रेवेली जद वा, घणो सुख पावेली ।।
सास ससुर ने भी समय के सागे ढलनो पड़सी ।
"बेटी"-"बहू" के फर्क ने, दूर करणो पड़सी ।।
समय आयग्यो सब ने, सोच बदलनी पड़सी ।
वरना हर परिवार इयां ही, टूटसि और बिखरसि ।
कहे कवि "घनश्याम", अगर बहु सुधी-स्याणी चाहो।
बेटियाँ ने पढ़ाई के साथे, "संस्कार" भी सिखाओ ।।
परणीज के आता ही बहू, होवण लागी न्यारी ।।
होवण लागी न्यारी, सासु सागे पटे कोनी ।
Ladies in Rajputana Dress |
नई पीढ़ी री बहूआ है, बे तो हर आजादी चावे ।
सास ससुर की टोका टाकी, बिलकुल नही सुहावे ।।
बिलकुल नही सुहावे, सुबह उठे है मोड़ी ।
लाज शरम री मर्यादा तो, कद की छोड़ी ।।
साड़ी को पहनाओ छोड्यो, सूट चोखा लागे ।
जींस टॉप पहन कर घुमण, जावे मिनख रे सागे ।।
जावे मिनख रे सागे, सर ढ़कणो छूट गयो है ।
'संस्कारा' सूं अब तो, रिस्तो टूट गयो है ।।
बहूआ की गलती कोनी, बेचारी वे तो है निर्दोष ।
बेटियां के उण माईता को, यो है सगलो दोष।।
यो है सगलो दोष, जका बेटियां ने सिर्फ पढ़ावे।
घर गृहस्ती री बात्या बाने, बिलकुल नही सिखावे।।
पढ़ाई के साथ साथ, "संस्कार"भी है जरुरी ।
"संस्कारा"के बिना तो, हर शिक्षा है अधूरी ।।
हर शिक्षा है अधूरी, डिग्रीयां कोई काम नही आवे ।
बस्यो बसायो घर देखो, मीनटा में टूट जावे ।।
बेटी की तो हर आदत, माँ बाप ने लागे प्यारी ।
वे ही आदता बहू में होवे, जद लागण लागे खारी ।।
लागण लागे खारी, सासु भी ताना मारे ।
कहिं नहीं सिखायो, माईत पीहर में थारे ।।
बेटी ही तो इक दिन, कोई की बहू बण कर जावेली ।
मिलजुल कर रेवेली जद वा, घणो सुख पावेली ।।
सास ससुर ने भी समय के सागे ढलनो पड़सी ।
"बेटी"-"बहू" के फर्क ने, दूर करणो पड़सी ।।
समय आयग्यो सब ने, सोच बदलनी पड़सी ।
वरना हर परिवार इयां ही, टूटसि और बिखरसि ।
कहे कवि "घनश्याम", अगर बहु सुधी-स्याणी चाहो।
बेटियाँ ने पढ़ाई के साथे, "संस्कार" भी सिखाओ ।।
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