Tourist Spot in Churu
सुराणा हवेली चूरू |
सुराना हवेली-
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि राजस्थान में एक नहीं दो हवा महल हैं। पहले हवा महल को पूरी दुनिया जानती है। राजधानी पिंकसिटी जयपुर में, लेकिन आश्चर्य की बात है कि दूसरा हवा महल, जिसे सुराणा हवेली कहा जाता है, उसमें विश्व प्रसिद्ध हवा महल से करीब दो गुना खिडकियां हैं। सभी जानते हैं कि जयपुर का हवा महल उसमें मौजूद खिड़कियों की वजह से ही वर्ल्ड फेमस है।रतनगढ़-
यह एक ऐतिहासिक किला है। काफी संख्या में पर्यटक यहां घूमने के लिए आते हैं। इस किले का निर्माण बीकानेर के राजा रत्नसिंह ने 1820 ई. में करवाया था। यह किला आगरा-बीकानेर मार्ग पर स्थित है। इस जगह के आसपास कई हवेलियां भी है। यहां रेतीले टीले हवा की दिशा के साथ आकृति और स्थान बदलते रहते हैं। इस शहर में कन्हैया लाल बंगला की हवेली और सुराना हवेली आदि जैसी कई बेहद खूबसूरत हवेलियां हैं, जिनमें हजारों छोटे-छोटे झरोखे एवं खिड़कियाँ हैं। ये राजस्थानी स्थापत्य शैली का अद्भुत नमूना हैं जिनमें भित्तिचित्र एवं सुंदर छतरियों के अलंकरण हैं। नगर के निकट ही नाथ साधुओं का अखाड़ा है, जहां देवताओं की मूर्तियां बनी हैं। इसी नगर में एक धर्म-स्तूप भी बना है जो धार्मिक समानता का प्रतीक है। नगर के केन्द्र में एक दुर्ग है जो लगभग ४०० वर्ष पुराना है।
सालासार बालाजी (Salasar Balaji)
यह भगवान हनुमान का मंदिर है। यह मंदिर जयपुर-बीकानेर मार्ग पर स्थित है। चूरू भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। माना जाता है कि यहां जो भी मनोकामना मांगी जाए वह पूरी होती है। प्रत्येक वर्ष यहां दो बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। यह मेले चैत्र (अप्रैल) और अश्विन पूर्णिमा (अक्टूबर) माह में लगते हैं। लाखों की संख्या में भक्तगण देश-विदेश से सालासार बालाजी के दर्शन के लिए यहां आते हैं। यह मंदिर पूरे साल खुला रहता है|चूरू के सुराणा हवेली में भी इतनी खिड़कियां और दरवाजे हैं कि जयपुर की शान हवा महल भी पीछे हो जाता है। जयपुर के हवामहल में 365 खिड़कियां हैं वहीं चूरू के इस महल में 700 से ज्यादा खिडकियां हैं। जयपुर का हवा महल 5 मंजिला है, जबकि चूरू की यह हवेली 6 मंजिला है। इसका निर्माण हवा महल बनने के सालों बाद हुआ था। साल 1870 में बने इस सुराना की हवेली की दीवारों पर चित्र हैं जो आज भी उस वक्त के इतिहास को सहज ही बयां करते हैं। हवेली की रखवाली करने वालों का कहना है कि इस महल के सभी खिड़की और दरवाजों को खोला और बंद किया जाए तो सुबह से शाम हो जाती है। इसमें कुल खिड़की और दरवाजों की संख्या 1111 है।
इसलिए इसके अधिकांश दरवाजों को बंद ही रखा जाता है। कहा जाता है कि कहीं न कहीं इस हवेली को बनवाने के पीछे हवा महल का ही कॉन्सेप्ट था। स्थानीय लोग इसे चूरू की हवेली कहते हैं। यहां आने वाले सैलानी इस हवेली को देखकर चौंक जाते हैं और कन्फ्यूज होकर पूछते हैं कि आखिर हवा महल है कहां।
कहते हैं सुराणा ने इसे बनवाने में ज्यादा मजदूरी नहीं खर्च की। उस वक्त राजस्थान में अकाल पड़ा हुआ था। लोग दाने-दाने को तरस रहे थे। तब मजदूर और उनके परिवार को दोनों जून का भोजन मुहैया कराकर इस हवेली का निर्माण करा लिया गया था।
दूधवा खारा
ऐतिहासिक दृष्टि से यह स्थान काफी महत्वपूर्ण है। यह स्थान चुरू से 36 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह गांव अपनी प्राकृतिक सुंदरता और खूबसूरत हवेलियों के प्रसिद्ध है। यहां आकर ग्रामीण परिवेश का अनुभव होता हे। इसके अलावा यहां ऊंटों की सवारी भी काफी प्रसिद्ध है।
तालछप्पर |
तालछप्पर अभ्यारण
तालछप्पर अभ्यारण चुरू जिले में स्थित है। यह जगह मुख्य रूप से काले किरण के लिए प्रसिद्ध है। इस अभ्यारण में कई अन्य जानवर जैसे-चिंकारा, लोमड़ी, जंगली बिल्ली के साथ-साथ पक्षियों की कई प्रजातियां देखी जा सकती है। इस अभ्यारण का क्षेत्रफल 719 वर्ग हेक्टर है।कोठारी हवेली
इस हवेली का निर्माण औसजान जैन ने करवाया था। वह काफी प्रसिद्ध व्यापारी था। इस हवेली का नाम उन्होंने अपने गोत्र के नाम पर रखा था। इस हवेली पर की गई चित्रकारी काफी सुंदर है। कोठारी हवेली में एक बहुत अद्भुत कमरा है जिसे मालजी का कमरा कहा जाता है। इसका निर्माण उन्होंने 1925 में करवाया था।छतरी
चूरू में कई देखने लायक गुम्बद है। अधिकतर गुम्बदों का निर्माण बड़े धनी व्यापारियों ने करवाया था। ऐसे ही एक गुम्बद-आठ खम्भा छतरी का निर्माण सन 1776 में किया गया था।
1 टिप्पणियाँ
दूधवा खारा होगा खेरा नहीं।
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