किण नै बोलाँ बावला - कविता

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किण नै बोलाँ बावला - कविता


रूँख लगाया राख्या कोनी मीठा फल भी चाख्या कोनी,
स्वारथ री ले हाथ कुल्हाड़ी काटन हुया उतावला,
बोलो किण रा काम सरावाँ किण नै बोलाँ बावला 
   
ज्यूँ ज्यूँ रूँख कट्या मंगरा सू मिनखपणै री जड़ कटगी,
पैला मन में बनी दीवाराँ धरती टुकडाँ मैं बँटगी,
हेत रेत रै पैंदे दब्ग्यो खेत बदल्ग्या बस्ती में,
वन रे थोर मिला री चिमण्या धुओं उगल री मस्ती में,
कट्या नीम बड पीपल चन्दन, केरटीमरूआँवला,
बोलो किण रा काम सरावाँ किण नै बोलाँ बावला 

चोफेर है हवा धुवादी जहर घुल्यो जिनगाणी में,
गजब गन्दगी घुल्बा लागी इमरत जैडा पानी में,
सुख रो सागर सूखो निकल्यो सपना बिक्या उधारी में,
खुशबू री आसा में उगी बदबू केसर क्यारी में,
मानसरोवर पूक्या बगला तन उजला मन साँवला,
बोलो किण रा काम सरावाँ किण नै बोलाँ बावला 

बगुला री एकत है ठाडी हंस गिणत में थोड़ा है,
मानसरोवर गुदलो होगो या हंसा में फोड़ा है,
झीलां में जलकुम्भी पसरी जल में कमल खिले कोनी,
चुगबा खातर याँ हँसा ने मोती आज मिले कोनी,
बगुला रे घर माँडा माही रहवे हंस कन्यावाला,
बोलो किण रा काम सरावाँ किण नै बोलाँ बावला 

डोर धनुष री टूटी टूटी तीर पड्या सब तरकश में,
पडी गुफायाँ सगली सूनी शेर घुस्या सब सरकस में,
पिंजरा में वनराज पीठ पे चाबूका नित झेले है,
जंगला माँही चोडै दहाड़े स्यार कबड्डी खेले है,
भूखा तिसाया हिरन फिरे अर गोठ करे है कावला,
बोलो किण रा काम सरावाँ किण नै बोलाँ बावला