Wah Bhai Shekhawati (वाह भाई शेखावाटी - कविता) Poem

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Wah Bhai Shekhawati (वाह भाई शेखावाटी - कविता) Poem

छाछ-राबड़ी, कांदो-रोटी, धरती को खाज।
झोटा देवै नीम हवा का, तीजण कर री नाज।।
पकी निमोली लुल झाला दे, नीम चढ़डी इठलावै।
मन चालै मोट्यारां का, जद टाबर गिटकू खावै।।
लूआ चालै भदै काकड़ी, सांगर निपजै जांटी।
कैर-फोगलो बिकै बजारां, वाह भाई शेखावाटी।।
रांभै गाय तुड़ावै बाछो, छतरी ताणै मोर।
गुट्टर-गूं कर चुगै कबूतर, बिखरै दाणा भोर।।
झग्गर झोटा दे' धिराणी, बेल्यां दही बिलोवै।
फोई खातर टाबर-टोली काड हथेली जोवै।।
टीबां ऊपर लोट-पलेटा, अंग सुहावै माटी।
ल्हूर घालरी कामण गार्यां, वाह भाई शेखावटी।।
रोही को राजा रोहीड़ो, चटकीलै रंग फूल।
मस्तक करै मींझर की सोरम, लुलै नीमड़ा झूल।।
गुड़-गुड़ करतो हुक्को घूमै, घणी सुहाणी रातां।
सीधा सादा लोग मुलकता, भोली भोली बातां।।
ऊंट-ऊंटणी भोपा-भोपी, छान ओबरा टाटी।
कोट-कंगूरा छतर्यां ऊपर, वाह भाई शेखावाटी।।
नथली झूलै नाक, गलै में सोवै नोसेर हार।
जुलम करैं आंख्यां को काजल, मैंदी रचै सुप्यार।।
नेह-लाज ममता-समता को, घमों सुहाणो रूप
ईं धती की गजबण जाणै स्यालै की सी धूप।।
साफो बांधै मूंछ मरोड़ै, चित चोरै कद-काठी।
मरद अठे का रसिक हठीला, वाह भाई शेखावाटी।।
माल उतर ज्यावै चरखै की, सुगमो सावण आतां।
गावै गीत गुवाड़ा, गजबण करै सुरंगी बातां।।
झूलो झूलै चढ़ी ड़ावड्यां, ऊबकली मचकावै।
काका जोड्यां ल्हूर घालती, कामण मिल मुलकावै।।
तीज सुरंगी, जो' डा-पूजण,राखी गूगाजांटी।
कामणगारो सावणियो, नखराली शेखावाटी।।
सीली रात पपड्यो जुल्मी पिया पिया दे बोल।
विरै दरद की मारी को,सुण थिर मन ज्यावै डोल।।
भोर होय कुहुक कोयलड़ी, सोई हुक जगावै।
छतरी ताणै झूम मोरियो, नाचै कदम मिलावै।।
मौज करै सूवा-टूटूड़ी, चुगै कमेड़ी गाती।
मरवण ऊबी पीव उडिकै, वाह भाई शेखावटी।।
जच्चा ओढै पीलो मनहर, सदा सुहागण चुनड़ी।
अचकना बागो बनड़ो पैरै, बेस कसमुल बनड़ी।।
गठजोड़ै की जात चाव सै, होलर जणै सुभागण।
पौबारा को सगुण मिलै' जे, दोगड़ लियां सुहागण।
खर बायंो दैणी गौमाता, मिलै दही की काठी।
चाला कटै सगुण सध जाणै, वाह भाई शेखावाटी।
हरी-भरोटी, दोगड़-रोटी,गाय चुंघाती बाछो।
धोली चील लूंगती नोल्यो, मुर्दो सामीं जातो।।
साबत नाज हरी तरकारी, भोत भलेरा सूण।
दसरावै नै लीलटांस दिख, बदलै जाणी जूण।।
सोन चिड़ी सांप सिर बैठी, मिलै सुहागण मा ठी।
सगुण-सास्तर बल लोगां को, वाह भाई शेखावाटी।
धती को उजलो गौरव, अर इतिहास कहाणी।
मरु का गौरव ऊंडा कूआ, बो इमरत सो पाणी।।
अणथक सेवा अडिग साधना, समता और समाई।
पर-उपकारी मिनख लियां, कूआं जतरी गहराई।।
सेवा भावी तपसी माणस, सत सूं सतियां माठी।
दाता-सूर भलेरा नरवर, वाह भाई शेखावाटी।।
लूठा बुध बल कौसलधारी, लोग बड़ा ही सच्छम।
सीमा जग जांबाज रुखालै, खेती-पेसो-ऊधम।।
तकनीकी विज्ञान चिकित्सा, सैं में कला निधान।
' धरती का दीप जागता, धरती घणी महान।।।
धनवानां विद्वानां की, या सापुरसां की थाती।
घम अनमोल रतन निपजावै, वाह भाई शेखावाटी।।
छिछलो पणो घणी गहराई, फक घणो दोन्यां में।
कूआं मसैं भी गहरी मिलसी, मैठ अठे लोगां में।
बोलैकम सोचै परहित में, सेखी नही बधारै।
ओड़ी में आडा आवणिया, सैं का काम संवारै।।
बोली जाणी मीठी मिसरी, घमी सुहावै म्हाटी।
भाी चारो रल्यो खून में, वाह भाई शेखावाटी।।
संत अटै का सिरै मौर, या धरती है संतां की।
नेम-धरम घर लिछमी राखै, कर सेवा कंतां की।।
सरधा-इमरत हिवड़ै राखै, सांचै मन का लोग।
सुरग अठे है भोग अठै, है त्याग तपस्या जोग।।
मनसा नरड़ खाटू सालासर, जीण शंकरा घाटी।
धन धती तूं  लोहगर की, वाह भाई शेखावाटी।।
जात-जडूला धोक-चूरमा, पितरां को जागरणो।
धुकै देवरा मंड-चूंतरा, सत जावै नहिं बरण्यो।।
खेतरपाल रिगतमल भैरूं, मामलियो म्हामाई।
रामदेवजी, गूगोजी की, जात लागती-आई।।
रात च्यानणी और अंधेरी, देव पितर में बांटी।
करै पालना लोग अठै का, वाह भाई शेखावाटी।।
जागरणां मोट्यार करै, अर राती जुगा लुगाई।
माल खेत की होय परकमा, जागै गंगा माई।।
जीवणमाता, मनसा माई, सिद्ध पीट साकंबरी।
खाटू हालो श्याम घणी, सालासार को बजरंगी।।
सीतला बागोर बिराजै, सिरै उदयपुरवाटी।
लक्ष्मीनाथ फतेहपुर राजै, वाह भाई शेखावाटी।।
गूगोजी को भोग गुलगला, खीर चूरमो सूणां।
कान्हो जलमै बणै पंजीरी, शिव छक ज्याय धतूरां।।
मालखेतजी, रामदेवजी, सकरबार सा' पीर।
मेला लोग उडिकै अणका, होकर घणा अधीर।।
तीज तिव्हांर बावड़ै साथै, गणगौर डबोवै जाती।
सूत्या देव जगै कातिक में, वाह भाई शेखावाटी।।
मन्दर नसियां जती सती, है छतर्यां सापुरसां की।
मठ-धूणां साधझू संतां का, धरा सिद्धि पीरां की।
पगल्यां मंड्या चबूतरा, मंडवा पितर वितान।
धज फहराता सिखरबंद ' धरती की पैचाण।।
धुकै देवरा बुंगली-बुंगला, जगै दिव जग बाती।
अंतर मन सैं करै आरत्यां, वाह भाई शेखावाटी।।
बेल्यां मोल दही रोटी की, छाछ राबड़डी छाकां।
सरदा सारू चिकणी-चुपड़ी, आथण कै दोपार्यां।।
गुड़, कान्दो, मूली, मिरची, घी को मिरियो सक्कर में।
छप्पन भोग कठै लागै, अणे बगां की टक्कर में।
गूंद सूंठजद खाय बूड़ला, टाबर मांगै पांती।
बिना चकायां दर ना भावै, वाह भाई शेखावाटी।।
ऊंडी थाली ठेठ किनारां, खीर परोसी होय।
भलै मिनख का दरसण, जाणी बेल्यां होया होय।।
सीरो अमरस बिना दांत को, भोजन है मौमस को।
स्यालै बणै सूसुआ रोटी, सागै दही सबड़को।।
जरी-पल्ला को मुख चूरमो, घी में गलगच बाटी।
दूर सबड़का सुणै दाल का, वाह भाई शेखावाटी।।
फोगलै को सरस रायतो, गड़तुम्बां को आचार।
सामरथां की सोख मेटदे, निरबल को आधार।।
खींप फोग जांटी कै मन में, गूंजै मरुधर नाद।
कैर सांगरी खिंपोली की, सबजी घणी सुवाद।।
बिन पाणी रह ज्याय जीवता, कैर कैलिया जांटी।
या ही झलक मिलै लोगां में, वाह भाई शेखावाटी।।
सुघड़ सलौना मुखड़ां सोवै, आंख बांधतो ओज।
झूला चकरी किलकार्यां, अर बै मेलां की मौज।।
डैलर हींडा की चररर मरर सुण, झोटा मन नै भावै।
रंग बिरंगी सजै बानग्यां, मन डग-डग हो ज्यावै।।
काजल-टीकी खेल-खिलौणा, मिलैमूण अर लाठी।
मनचीत्या होवै मेलां में, वाह भाई शेखावाटी।।
जेठ साड में पड़ै तावड़ो, उठै घटा घनघोर।
मेलां की रुत सावण-भातो, चैत मायं गणगौर।।
पाकै गिटकू किरै काचरा, सौरम रै सिट्टां की।
बड़ी दूर सै खुसबू आवै, मट काचर मिठ्ठां की।।
लोहागर का आम रसीला, भोग चूरमो-बाटी।
मिलणा दुरलभ सुरगां में, वाह भाई शेखावाटी।।
ढलती रात बारियो बैरी, बोलै मीठा बोल।
धण को मन बेचैन करै, दे मन की गांठां खोल।।
चाकी जोवण उठ चालै, कजरारा नैण नवेली।।
रसियो पकड़ै बांह गौर की, होवै फेर ठिठोली।।

घम्मड़का लागै चाकी का, गजबण जोरा म्हाटी।
सोरी आवै नींद फेर तो, वाह भाई शेखावाटी।।
ऊंचा मरुआ ऊंडा कूआ, च्यारूं ढाणां भूण।
दोगड़ ल्याती पणिहार्यां कै, कमर चढ़ी रै मूण।।
पणघट पर भेली हो ज्यावै, मधुर याद मनरातां।
कोई भेद रह्वै ना बाकी, धुल धुल होवै बातां।।
रस लेती सरमावै एकण, दूजी कै मन आंटी।
तीजी खोलै मन की परतां, वाह भाई शेखावाटी।।
बारा बोलै भोर बारियो, मारै कीलियो झोल।
ढाणै में चड़स थाम ले, बो' कीली दे खोल।।
कल-कल करती गंगा चालै, तिरपत होवै क्यारी।
धोरा डांड नीपजै सागै, हरख मनां रै भारी।।।
मींणत कस इंसान रीजता, उपजाऊ है माटी।
न्यारी न्यारी निपज निराली, वाह भाई शेखावाटी।।
चौकीदारी घमी जोर की, खबड़दार कह बोलै।
कोई रसियो मूमल गावै, सीली रा बिचोलै।।
परदेसां ले ज्याय भंवर नै, पापी पेट अनाड़ी।
भर जोबन में बलै कालजो, ' धण की लाचारी।।
काली कोसां को अन्तर, रस रात कटै ना काटी।
बैरण याद हियै में खटकै, वाह भाई शेखावाटी।।
तिथ बारां की अलग कहाणी, व्रत पूजा हथफेरा।
कातिक न्हावै मंगसिर न्हावै, सीधा आला-कोरा।।
सावा जोग म्हूरत काड़ै, पण्डित ले पतड़ा पोथी।
धरम करम में घणी आस्था, बिसवासी लोगां की।।
रोली-मोली, तिलक-चोपड़ा, दिछणा की परिपाटी।
दुध्धड़िया म्हूरत फेरां का, वाह भाई शेखावाटी।।

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4 टिप्पणियाँ

  1. बहुत गजब की राजस्थानी कविता है मैं कवि होने के नाते इस कविता के रचनाकार सैल्यूट करता हूं

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  2. मैं कवि होने के नाते इस कविता के रचनाकार को सैल्यूट करता हूं

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  3. बहुत ही ग़ज़ब निशब्द कर दिया इस रचना ने

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