बेटी बिना काई को जमानों - कविता

gadstp

बेटी बिना काई को जमानों - कविता

Daughter in Village well
Daughter in Village well
बेटी बिना काई को जमानों, इण बात ने पहचाणो
बेटी खेले जीण आंगणै, जठे आनंद सर्वगा रो आणो
अरे आतो चिड़कली तो दस दिन री मेहमान
समजे कोनी दुनिया, क्यू जलम्या पेली पहुंचा दे श्मशान।।
पूत कपूत जलम जावे, पर बेटी कदी कपुति ने होय
जीण घर कदर नही बेटी की, घर नरक से भुंडो होए।
धोरां मंड्या पगलिया, चिड़कली जद चालण लागी।
आँगन महकण लाग्योजद गोद में से उठ चालण लगी.
क्यों दुनिया कैवे तू पराई है, तू तो म्हारे मर्यादा रो चंदन है।
तू चिड़कली म्हारी, तू माँ के दिल री धड़कन है।
मायड़ जाण कळेजै री कोरफ़ूल माथै पांख्यां धरी।
माथै कर-कर पलकां री छांयपाळ-पोस मोटी करी॥
राखी नैणां री पुतळी जाणमोतीडा़ सूं महंगी जाणि।
जद तू छोड़ बाबुल ने चाली, सूखे गयो समंदा रो पाणी।।
करती कळझळ हिवडै़ रा दो टूककूंकूं पगल्या आगै धरिया
कायर हिरणी-सी मुड़-मुड़ देख ,आंख्यां माथै हाथ धरिया
मुखडो़ मुरझायो बिछडंतां आजरो-रो नैण राता करिया
थडै़ चढती पाछल फ़ोरसहेल्यां नै झालो दियो।
छळक्या नैण घूंघटियै री ओटकाळजो काढ लियो।
अमर आसीस है बाबुल री एक दिन दुनिया दुःख थारो जाणेली
स्वर्ग बन जावली दुनिया जद हर आँगण बेटियाँ पगलिया माण्डेली

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