मत पूछे के ठाठ भायला, पोळी में है खाट भायला ||
पनघट पायल बाज्या करती, सुगनु चुड़लो हाथा मै |
रूप रंगा रा मेला भरता, रस बरस्या करतो बातां मै |
हाँस हाँस कामन घणी पूछती, के के गुज़री राताँ मै |
घूंघट माई लजा बीनणी, पल्लो देती दांता मै |
नीर बिहुणी हुई बावड़ी, सूना पणघट घाट भायला |
पोळी मै है खाट भायला ||
पोळी मै है खाट भायला ||
छल छल जोबन छ्ळ्क्या करतो, गोटे हाळी कांचली |
मांग हींगलू नथ रो मोती, माथे रखडी सांकली |
जगमग जगमग दिवलो जुगतो, पळका पडता गैणा मै |
घणी हेत सूं सेज सजाती, काजल सारयां नैणा मै |
अतर छिडकतो पान चबातो नैलै ऊपर दैलो |
दुनिया कैती कामणगारो, अपने जुग को छैलो हो |
पण बैरी की डाढ रूपि ना, इतनों बळ हो लाठी मैं |
तन को बळ मन को जोश झळकणो, मूंछा हाली आंटी मै |
इब तो म्हारो राम रूखाळो, मिलगा दोनूं पाट भायला | पोळी मै है खाट भायला||
बिन दांता को हुयो जबाडो चश्मों चढ़ग्यो आख्याँ मै |
गोडा मांई पाणी पडगो जोर बच्यो नी हाथां मै |
हाड हाड मै पीड पळै है रोम रोम है अब खाई |
छाती कै मा कफ घरडावै खाल डील की लटक्याई ||
चिठियो म्हारो साथी बणगो, डगमग हालै टाट भायला | पोळी मै है खाट भायला ||
शब्दों का अर्थ
शब्दों का अर्थ
ठाठ - हाल
भायला -दोस्त
पोळी - घर का मुख्य दरवाजा जहा मेहमानों को बैठाया जाता है | राजस्थानी घरो में पुराणी परम्परा के अनुसार मेहमानखाना दो दरवाजो का होता है | उसकी छत कच्ची होती है घर में जाने का मार्ग उसमे से होकर जाता है |
बरस्या- बरसना
कामण - कमनिय औरत
घणी - ज्यादा
बीनणी- वधु
नीर बिहुणी - बिना पानी के
कांचळी - अंगिया (वस्त्र)
हीन्गळू -मांग भरने का सिन्दूर
नथ- नाक का गहना
रखडी - माथे के उप्पर पहनने का गहना
सान्कळी- (जंजीर रूपी गहना जो माथे पर बांथा जाता है )
दिवलो -दीपक
जुगतो- जलना , प्रकाशमान होना
पळका - चोन्ध्याने की क्रिया
गैणा- गहना
सारया - खैंचना ( आँखों में काजल की लाइन खीचने का भाव )
बाट - इंतजार करना
अतर - इत्र
कैती- कहती
जुग - समय
पण- परन्तु
हाळी - वाली
रूखाळो- रखवाला
मिलगा दोनू पाट - विचार हीन होना ,दुनिया दारी से आँखे बंद कर लेना
गोडा- घुटना
हाड - हड्डियां
पीड़ पळै - दर्द बढ़ना
अबखायी - शारीरिक परेशानी
घर्डावै- घर्र घर्र की आवाज आना
डील - देह
चिटियो - बूढे आदमियों के सहारे के लिए बनी लकडी जो ऊपर से मुडी हुई होती है |
डगमग - ज्यादा हिलना डुलना
टाट - खोपडी
पोळी - घर का मुख्य दरवाजा जहा मेहमानों को बैठाया जाता है | राजस्थानी घरो में पुराणी परम्परा के अनुसार मेहमानखाना दो दरवाजो का होता है | उसकी छत कच्ची होती है घर में जाने का मार्ग उसमे से होकर जाता है |
बरस्या- बरसना
कामण - कमनिय औरत
घणी - ज्यादा
बीनणी- वधु
नीर बिहुणी - बिना पानी के
कांचळी - अंगिया (वस्त्र)
हीन्गळू -मांग भरने का सिन्दूर
नथ- नाक का गहना
रखडी - माथे के उप्पर पहनने का गहना
सान्कळी- (जंजीर रूपी गहना जो माथे पर बांथा जाता है )
दिवलो -दीपक
जुगतो- जलना , प्रकाशमान होना
पळका - चोन्ध्याने की क्रिया
गैणा- गहना
सारया - खैंचना ( आँखों में काजल की लाइन खीचने का भाव )
बाट - इंतजार करना
अतर - इत्र
कैती- कहती
जुग - समय
पण- परन्तु
हाळी - वाली
रूखाळो- रखवाला
मिलगा दोनू पाट - विचार हीन होना ,दुनिया दारी से आँखे बंद कर लेना
गोडा- घुटना
हाड - हड्डियां
पीड़ पळै - दर्द बढ़ना
अबखायी - शारीरिक परेशानी
घर्डावै- घर्र घर्र की आवाज आना
डील - देह
चिटियो - बूढे आदमियों के सहारे के लिए बनी लकडी जो ऊपर से मुडी हुई होती है |
डगमग - ज्यादा हिलना डुलना
टाट - खोपडी
1 टिप्पणियाँ
बहुत शानदार रचना ।
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