शेखावाटी - प्राचीन हवेलियों और उत्सवों का शहर
शेखावाटी में रंग-बिरंगी हवेलियों का समूह कलात्मक परम्परा में अदभुत लगता है। यहाँ की ज्यादातर इमारतें अठारहवी शताब्दी से लेकर बीसवीं शताब्दी के आरंभ तक की है। शेखावाटी प्रदेश में इतनी सारी हवेलीयाँ हैं की इनमें से गुजरना मानो किसी ख़ज़ाने की खोज लेने जैसा लगता है। इनकी दीवारों तथा छतों पर महीन कला के विभिन्न प्रकार हैं, जो इन इमारतों को बाकी समतल तथा विरान भूमि से आगे अलग बना देते है। इन हवेलियों में पुराण कालीन चित्र तथा बड़े प्राणियों की आकृतियाँ बनायी गई हैं। बाद में बने कुछ चित्रों पर भाप के इंजन तथा रेलगाडीयाँ हैं, जो ब्रिटिशों की छाप दिखती है। शेखावाटी की हवेलियाँ अपनी विशालता और भित्ति चित्रकारी के लिए विश्व में प्रसिद्ध है। इन्हें देखने के लिए साल भर देशी-विदेशी पर्यटकों का ताँता लगा रहता है।
अपनी चित्रित हवेलियों, महलों
और अन्य कई
एतिहासिक धरोंहरों के लिए
प्रसिद्ध शेखावाटी को "ऑपन
आर्ट गैलरी ऑफ़
राजस्थान" के नाम
से भी जाना
जाता है। नदीने
प्रिंस हवेली, मोरारका हवेली
म्यूजियम, डॉ.रामनाथ.ए.पोद्दार
हवेली म्यूजियम, जगन्नाथ
सिंघानिया हवेली और खेत्री
महल यहाँ के
प्रमुख आकर्षक स्थल है।
1802 में बनाई नदीने
प्रिंस हवेली के नये
मालिक एक फ्रांसिसी
कलाकार ने इसे
आर्ट गैलरी और
सांस्कृतिक केंद्र में परिवर्तित
कर दिया है।
डॉ.रामनाथ.ए.पोद्दार हवेली म्यूजियम
में राजस्थानी संस्कृती
को दर्शाते कई
चित्र मौजूद है।
मोरारका हवेली म्यूजियम लग
भग 250 साल पुराना
किला है, जब
की खेत्री महल
1770 में बनी बहुमूल्य
एतिहासिक धरोहर है, हम
यहाँ प्राचीन वास्तुकला
देख सकते हैं।
मंडावा, मुकुंदगढ़ और डूंडलोद
के किले शेखावाटी
के प्रमुख किलों
में से है।
पर आजकल मंडावा
का किला हेरिटेज
होटल बन गया
है, जब कि
डूंडलोद किला यूरोपियन चित्रों के
बहुत बड़े संग्रहालय
के रूप में
परिवर्तित हो गया
है। मुकुंदगढ़ किला
8000 वर्ग मीटर में
फैला है और
इसके विशाल बरामदे,
आंगन और बारजे
देखने लायक है।
इनके अलावा यहाँ पर
बनी कई मस्जिदे
और हिरन अभयारण्य
देखने योग्य स्थान
है। पर्यटकों को
ऊँट पर सवार
होकर पूरे रेगिस्थान
की सैर करने
में बड़ा मज़ा
आता है। यहाँ
के कई महल
आज हेरिटेज होटल
में तब्दील हो
गए हैं, यहाँ
सैलानियों को मंत्रमुग्ध
कर देने वाला
अनुभव प्राप्त होता
है।
इस प्रदेश के गाँव अपनी बेहतरीन रंगी हुई हवेलियों के लिये जाने जाते हैं। यह हवेलियाँ इतनी भिन्न तथा वास्तुकला में समृद्ध हैं कि इस प्रदेश को "राजस्थान
की ओपन आर्ट गैलरी" कहा
जाता है।
हालांकि अब आप इस इलाके में जायें तो वह सम्पन्नता भले ही बिखरी नजर न आये, लेकिन कुछ हवेलियों में चित्रकारी बेशक सलामत नजर आ जाती है। अभी जो हवेलियां हैं, उनकी चित्रकारी 19वीं सदी के आखिरी सालों की बताई जाती है। यकीनन उससे पहले के दौर में भी यह परम्परा रही होगी लेकिन रख-रखाव न होने के कारण कालान्तर में वे हवेलियां गिरती रहीं। लेकिन हवेलियों में चित्र बनाने की परम्परा इस कदर कायम रही कि वर्ष 1947 से पहले बनी ज्यादातर हवेलियों में यह छटा बिखरी मिल जाती है।
कहा जा सकता है कि चित्रकारी की परम्परा भी उसके थोडे समय बाद ही जोर पकड़
गई होगी। यहां की हवेलियों की दीवारों का भी सुन्दर चित्रांकन मिलता है। इनमें मध्यकालीन और रीतिकालीन जनजीवन और राजस्थानी संस्कृति बिखरी है। कुछ हवेलियों पर देवी-देवताओं के चित्र बने हैं तो कुछ पर विवाह सम्बन्धी या फिर लोक पर्वों के अलावा युद्ध, शिकार और संस्कारों के चित्र भी।
छतों
व छतरियों में गुम्बद के भीतरी हिस्से में भी गोलाकार चित्र बनाये गये हैं। शेखावाटी की हवेलियां आज भी अपने मालिकों की यश-गाथाएं दुहराती हैं। पूर्णतया चित्रांकित चोखाणी की हवेली के पौराणिक चित्र और दरवाजों की शीशम की चौखटों पर किये गये बारीक कलात्मक कार्यों को देखकर कोई उसे पुरानी नहीं कह सकता। स्थिति यह है कि हवेलियां ही हवेलियां, एक के बाद दूसरी हवेली और खुर्रेदार चबूतरों की हवेलियां। इन हवेलियों के डिजाइन की खूबी यह है कि हर हवेली के सामने एक ऊंचा खुर्रा है जिस पर हाथी भी चढ सकता है।
उत्सव और आनंद
फ़रवरी के महीने में यहाँ सालाना शेखावाटी उत्सव का आयोजन होता है, इस उत्सव में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं, जिसे देखने यहाँ बहुत संख्या में भीड़ उमड़ती है। इस उत्सव का आयोजन राज्य पर्यटक विभाग और सीकर, चुरू और झुंझुनू के जिला प्रशासन मिलकर करते हैं। यह मेला इस प्रांत की ग्रामीण जीवन शैली को दर्शाता है।
शेखावाटी के 4 शहर
नवलगढ़, झुंझुनू, सीकर और
चुरू में आयोजित
इस मेले में
कई कार्यक्रम पेश
किये जाते हैं
जैसे ग्रामीण खेल, (गींदड़ नृत्य), सांस्कृतिक गीत,
प्रतियोगिता, कार्यक्रम और आतिशबाजी
इस मेले का
प्रमुख आकर्षण है।
1 टिप्पणियाँ
शेखावाटी का वैभव आज भी इन हवेलियों में जीवंत हैं . कई सेठ परिवारों ने आज भी अच्छा रखरखाव कायम रखा है . आपका लेख इन हवेलियों को रूबरू देखने को लालायित करता है . ज़रूर एकबार देखेंगे .
जवाब देंहटाएं