सीकर
हेडिंग की तरह कहानी भी पूरी फिल्मी है। अपराधियों के साथ पुलिस आैर पॉलिटिकल पावर का खेल भी यहां है। अपराधों का ताना-बाना इतना उलझा हुआ है कि उसके मुकाबले राजस्थान के शेखावाटी का भूगोल समझना ज्यादा आसान है। जी हां, बात गैंग्स ऑफ शेखावाटी की हो रही है। सत्ता के गलियारों में भले ही राजनेताओं और अपराधियों के नेक्सस की कहानियां न पहुंचती हों, लेकिन गुनाहों की जुबान कभी खामोश नहीं होती। वे अपना सच खोल ही देते हैं, चाहे देर से ही सही।
अपराध के तीन चेहरे- बलबीर बानूड़ा, आनंदपाल और राजू ठेहट
शेखावाटी में अपराध के कभी तीन चेहरे हुआ करते थे। अब दो ही हैं। बलबीर बानूड़ा की हत्या के बाद आनंदपाल आैर राजू ठेहट, इन्हीं दोनों की रंजिश से शेखावाटी की पहचान कुख्यात हो रही है। इस गैंग में एक फीमेल कैरेक्टर भी है। नाम है अनुराधा। अनुराधा बड़े व्यापारियों के अपहरण का प्लान बनाकर उनसे ‘प्रोटेक्शन फीस’ वसूलती थी।
राजू ठेहट शराब के धंधे से बनाया गिरोह
> 8 अगस्त 2013 को एटीएस ने उसे असम में पकड़ा था। अलवर जेल में बंद। गैंग से जुड़े हैं 200 लोग।
> 25 से ज्यादा केस दर्ज, चार हत्या से जुड़े।
> 8 अगस्त 2013 को एटीएस ने उसे असम में पकड़ा था। अलवर जेल में बंद। गैंग से जुड़े हैं 200 लोग।
> 25 से ज्यादा केस दर्ज, चार हत्या से जुड़े।
ऐसे शुरू हुई अपराध की कहानी
कहानी शुुरू हाेती है 1997 से। तब बलबीर बानूड़ा और राजू ठेहट दोस्त हुआ करते थे। दोनों शराब के धंधे से जुड़े हुए थे। 2005 में हुई एक हत्या ने दोनों दोस्तों के बीच दुश्मनी की दीवार खड़ी कर दी। शराब ठेके पर बैठने वाले सेल्समैन विजयपाल की राजू ठेहट से किसी बात पर कहासुनी हो गई। पुलिस फाइल्स के मुताबिक-विवाद इतना बढ़ा कि राजू ने अपने साथियों के साथ मिलकर विजयपाल की हत्या कर दी। विजयपाल रिश्ते में बलबीर का साला लगता था। विजय की हत्या से दोनों दोस्तों में दुश्मनी शुरू हाे गई। बलबीर ने राजू के गैंग से निकलकर अपना गिरोह बना लिया।
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